एक भूमिहार और दलित-पिछडे की शोषण की कहानी
एक भूमिहार था। उसका दूध का सेंटर था। दो-तीन गांव के दलित-पिछड़े उसी के यहां दूध पहुंचाते थे। लेकिन बदले में उन्हें काफी कम पैसे मिलते थे। एक दिन गांव में एक पढ़ा-लिखा युवक आया। वह अपने मौसा से मिलने आया था। जब उसे इतने कम पैसे पर दूध बेचे जाने की पता चली तब उसने उनलोगों को को-ऑपरेटिव बनाकर दूध बेचने की बात कही। पहले लोग नहीं माने। केवल 8-10 लोग ही सामने आएं। लेकिन जब दूध की ज्यादा कीमत मिलने की बात पता चली तब सभी लोग को-ऑपरेटिव से जुड़ने लगे। को-ऑपरेटिव से जहां दलित-पिछड़ों की आमदनी काफी अच्छी हो गई थी, वहीं उस भूमिहार का धंधा मंदा। उसने बदला लेने की ठानी। उसने लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काना शुरु किया। धीरे-धीरे को-ऑपरेटिव में कई गुट बन गए। एक रात भयंकर लाठा-लाठी हुई। मौका देखकर भूमिहार के गुंडों ने कई लोगों के घर भी जला दिए। पुलिस आई और सभी को थाने ले गई। योजना के मुताबिक उस भूमिहार ने सबका जमानत करवा दिया और दलित-पिछड़े के लिए मसीहा बन गया। उस युवक ने सबको को-ऑपरेटिव पर आने की बात कही। कोई नहीं आया। सभी भूमिहार के सेंटर पर जाने लगे। शुरु में दूध का सही दाम दिया गया। काफी समझाने पर भी जब लोग नहीं माने तब युवक को वापस लौटना पड़ा। उसके जाते ही भूमिहार ने दूध की कीमत पहले से भी कम कर दी।
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