यादवों को बदनाम करने की कोशिश ताकि पिछड़ी जातियों में बैर बढ़े


यादव पिछड़ी जातियों की रीढ़ की हड्डी हैं। इनकी कोशिशों से ही पूरा पिछड़ा समाज खड़ा हो पाने में समर्थ हो सका है। इसलिए सामंतियों की कोशिश होती है कि इस हड्डी को तोड़कर पूरे पिछड़ा समाज को फिर से अपंग बना दिया जाए। अपने प्रयोजन को सफल बनाने के लिए सामंती लोग, जिनकी मानसिकता ही है दलित-पिछड़ों का शोषण करना, वे परोक्ष-अपरोक्ष रूप से यादवों पर हमला करते रहते हैं।
अनुमान के मुताबिक हिंदुओं की कुल संख्या का 16-18% के करीब यादव हैं, जबकि उच्च जातियों की जनसंख्या 12-13% के करीब। अर्थात यादवों की जनसंख्या उच्च जातियों की जनसंख्या से करीब 4-5% तक अधिक है। उच्च जातियों की यादवों से घृणा का सबसे बड़ा कारण यही है। अपने संख्या बल और क्षत्रिय वंश के कारण यादव सामंतियों को उसी की भाषा में जवाब देते हैं।
पिछड़ी जातियों को उठाने के लिए यादवों ने खूब संघर्ष किया है। पिछड़ा आयोग के अध्यक्ष के तौर पर बीपी मंडल(यादव) ने शोषित सभी जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल कर उनके विकास के लिए रास्ता बनाया। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव जैसे लोगों ने मंडल कमीशन को लागू कराने के लिए सड़क से संसद तक सामंतवादियों से लड़ाई लड़ी। उनके इस कोशिश से सामंती इतने बेचैन हो गए कि कुत्ते, सुअर, गदहे जैसे जानवरों पर इनका नाम लिख दिया जाता था।
इसी दौरान सत्ता की चाबी ऊंची जातियों के हाथ से निकल पिछड़ों के हाथ आने लगी और इसके प्रणेता यादव ही थे।
यादव की अगुवाई में एकजुट होकर पिछड़े शोषण से मुक्त हो इज्जत की जिंदगी जीने लगे। विकास करने लगे।
सामंतियों को पिछड़ों का आगे बढ़ना अच्छा नहीं लगा। उन्हें पीड़ा होने लगी। वे पिछड़ों की रीढ़ तोड़ने की कोशिश में लग गए। सामंतियों से भड़े मीडिया ने यादवों के खिलाफ गलत खबर दिखाना शुरु किया। सामंती पार्टियों ने यादवों पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और यादववाद का आरोप लगाया पिछड़ों को यादवों से दूर करने की कोशिश की, जिसमें वे लगभग सफल भी हो चुके हैं। सामंतवादियों ने पिछड़ों के मन में भर दिया है कि यादव उनका हिस्सा खा रहे हैं, जो कि बिल्कुल गलत है। लेकिन पिछड़ों ने सामंतियों की बात मान ली और अपने रीढ़ से लगभग अलग हो चुके हैं। इससे यादवों की सत्ता पर पकड़ कमजोर हुई है। जिसका नतीजा पिछड़ों ने भुगतना शुरु कर दिया है। आज उनकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं। अपने हितार्थियों  को उन्होंने खुद संसद से बेदखल कर दिया है।
पिछड़ी जातियां जल्द चेत जाएं नहीं तो उनकी बर्बादी निकट है।

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