पश्चिम बंगाल में मरीज की मौत पर पिटाई से डॉक्टरों का खून खौला, मुंबई की पायल तड़वी की हत्या पर थे मौन
द एक्सपोज़ एक्सप्रेस.
बिहार दोहरी मार झेल रहा है, लेकिन यहां के 12000 डॉक्टर हड़ताल पर हैं। प्रचंड गर्मी ने जहां 100 से अधिक लोगों को निगल लिया वहीं इंसेफ्लाइटिस ने भी इतने बच्चों की जीवन लीला समाप्त कर दी है। इतना सब कुछ होने के बावजूद धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर कार्य बहिष्कार कर हड़ताल पर हैं। मौत का तमाशा देख असूरों की तरह मौज ले रहे हैं। इनसे भी आगे हमारे स्वास्थ्य मंत्री हैं। समस्या को सुलझाने के लिए बुलाए गए मीटिंग में जहां केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे, जिनका संबंध बिहार से ही है को निंद आ जाती है वहीं मौतों पर प्रश्न पूछे जाने पर बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे कहते हैं मैं नेता हूं डॉक्टर नहीं।
मौत के मंजर के दौरान मंत्रियों के इस अकर्मण्यता से अनायास ही बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजप्रताप यादव की याद आ जाती है। तेजप्रताप ने स्वास्थ्य मंत्री रहते बिहार के सरकारी अस्पतालों की सूरत बदल दी थी। जदयू-भाजपा की सरकार में हुए मेडिकल घोटाले से वर्षों से बंद पड़े बीएमएससीआईएल(बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड कॉर्पोरेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) को पुनर्जिवित किया। जिससे अस्पतालों के लिए मशीनें और दवाओं को खरीदने की प्रक्रिया को पुनः शुरु किया गया।
तेजप्रताप द्वारा अस्पतालों के औचक निरीक्षण से अस्पतालों की सफाई व्यवस्था अपने सर्वोत्तम दौर में पहुंच चुकी थी। जो डॉक्टर अपनी निजी क्लिनिक छोड़ शायद ही कभी सरकारी अस्पताल में दिखते थे, तेजप्रताप के मंत्री रहते उन्हें भी समय से अस्पताल पहुंचना पड़ता था। तेजप्रताप के गुस्से का शिकार बिहार के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्था के निदेशक तक को भी होना पड़ा था। मीटिंग में देर से पहुंचने पर निदेशक महोदय को उन्हीं के चैंबर में नहीं घुसने दिया गया था। तेजप्रताप के इस ठसक से सभी डॉक्टर अनुशासन में रहने को मजबूर थे।
मौजूदा समय में तेजप्रताप जैसे स्वास्थ्य मंत्रियों की जरूरत है, जो टेढ़ी उंगली से हड़ताल पर गए डॉक्टर से काम निकलवा सके।
डॉक्टरों की हड़ताल का मुख्य कारण पश्चिम बंगाल के नील रत्न सरकार मेडिकल कॉलेज में एक 75 वर्षीय व्यक्ति की मौत के बाद दो जूनियर डॉक्टर और मृतक के परिजनों के बीच मारपीट है। इस मार-पीट में दोनों जूनियर डॉक्टर गंभीर रूप से घायल हो गए थे। जिसके बाद शायद राजनीतिक फायदे के लिए मामले को तूल देकर देशव्यापी बना दिया गया। इंडियन मेडिकल एशोसियन ने भी पंजीकृत डॉक्टरों को हड़ताल करने के लिए आह्वान किया है।
डॉक्टर की सुरक्षा बेहद जरूरी है। बिना सुरक्षा वे अच्छे से काम नहीं कर सकते। लेकिन ताली एक हाथ से नहीं बजती। डॉक्टरों द्वारा इलाज में कोताही बतरने से मरीज की मृत्यू और फिर मृतकों के परिजनों को अस्पताल प्रशासन द्वारा मारने-पीटने और मृत शरीर को बंधक बनाने जैसी तमाम खबरें लगातार आती रहती हैं। इससे साफ पता चलता है कि डॉक्टर पाक-साफ नहीं होते। इस केस से जुड़े सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं। हड़ताल फिर भी खत्म नहीं हुआ है। गलती किसकी है अस्पताल में लगे कैमरे से आसानी से ज्ञात हो जाता।
इस मुद्दे को इतना तूल देने की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन चूंकि मामला पश्चिम बंगाल का है और आरोपी मुस्लिम है, शायद इस लिए हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई बढ़ा, मामले को सांप्रदायिक रंग दे वोटों की ध्रुवीकरण से जुड़ा है। जूनियर डॉक्टरों से मिल कर लौटे आईएमए प्रमुख डॉ शांतनु सेन का कहना कि धरना में बाहरी लोग बैठकर हड़ताल की दिशा तय कर रहे हैं, इस आशंका को और भी ज्यादा बल देता है।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। मुंबई में एक जूनियर डॉक्टर ने सीनियर की प्रताड़ना और जातिसूचक गालियां देने से आत्म हत्या कर ली थी। हालांकि परिजन इसे हत्या बताते हैं। क्या उस समय डॉक्टर फैटरनिटी का खून नहीं खौला था? क्या इनकी नजर में मार-पीट का मामला हत्या से ज्यादा गंभीर है या फिर डॉक्टरों की हड़ताल राजनीति से प्रेरित है।
कारण जो कुछ भी हो डॉक्टरों की हठ से नुकसान आम लोगों का हो रहा है।
बिहार दोहरी मार झेल रहा है, लेकिन यहां के 12000 डॉक्टर हड़ताल पर हैं। प्रचंड गर्मी ने जहां 100 से अधिक लोगों को निगल लिया वहीं इंसेफ्लाइटिस ने भी इतने बच्चों की जीवन लीला समाप्त कर दी है। इतना सब कुछ होने के बावजूद धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर कार्य बहिष्कार कर हड़ताल पर हैं। मौत का तमाशा देख असूरों की तरह मौज ले रहे हैं। इनसे भी आगे हमारे स्वास्थ्य मंत्री हैं। समस्या को सुलझाने के लिए बुलाए गए मीटिंग में जहां केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे, जिनका संबंध बिहार से ही है को निंद आ जाती है वहीं मौतों पर प्रश्न पूछे जाने पर बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे कहते हैं मैं नेता हूं डॉक्टर नहीं।
मौत के मंजर के दौरान मंत्रियों के इस अकर्मण्यता से अनायास ही बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजप्रताप यादव की याद आ जाती है। तेजप्रताप ने स्वास्थ्य मंत्री रहते बिहार के सरकारी अस्पतालों की सूरत बदल दी थी। जदयू-भाजपा की सरकार में हुए मेडिकल घोटाले से वर्षों से बंद पड़े बीएमएससीआईएल(बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड कॉर्पोरेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) को पुनर्जिवित किया। जिससे अस्पतालों के लिए मशीनें और दवाओं को खरीदने की प्रक्रिया को पुनः शुरु किया गया।
तेजप्रताप द्वारा अस्पतालों के औचक निरीक्षण से अस्पतालों की सफाई व्यवस्था अपने सर्वोत्तम दौर में पहुंच चुकी थी। जो डॉक्टर अपनी निजी क्लिनिक छोड़ शायद ही कभी सरकारी अस्पताल में दिखते थे, तेजप्रताप के मंत्री रहते उन्हें भी समय से अस्पताल पहुंचना पड़ता था। तेजप्रताप के गुस्से का शिकार बिहार के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्था के निदेशक तक को भी होना पड़ा था। मीटिंग में देर से पहुंचने पर निदेशक महोदय को उन्हीं के चैंबर में नहीं घुसने दिया गया था। तेजप्रताप के इस ठसक से सभी डॉक्टर अनुशासन में रहने को मजबूर थे।
मौजूदा समय में तेजप्रताप जैसे स्वास्थ्य मंत्रियों की जरूरत है, जो टेढ़ी उंगली से हड़ताल पर गए डॉक्टर से काम निकलवा सके।
डॉक्टरों की हड़ताल का मुख्य कारण पश्चिम बंगाल के नील रत्न सरकार मेडिकल कॉलेज में एक 75 वर्षीय व्यक्ति की मौत के बाद दो जूनियर डॉक्टर और मृतक के परिजनों के बीच मारपीट है। इस मार-पीट में दोनों जूनियर डॉक्टर गंभीर रूप से घायल हो गए थे। जिसके बाद शायद राजनीतिक फायदे के लिए मामले को तूल देकर देशव्यापी बना दिया गया। इंडियन मेडिकल एशोसियन ने भी पंजीकृत डॉक्टरों को हड़ताल करने के लिए आह्वान किया है।
डॉक्टर की सुरक्षा बेहद जरूरी है। बिना सुरक्षा वे अच्छे से काम नहीं कर सकते। लेकिन ताली एक हाथ से नहीं बजती। डॉक्टरों द्वारा इलाज में कोताही बतरने से मरीज की मृत्यू और फिर मृतकों के परिजनों को अस्पताल प्रशासन द्वारा मारने-पीटने और मृत शरीर को बंधक बनाने जैसी तमाम खबरें लगातार आती रहती हैं। इससे साफ पता चलता है कि डॉक्टर पाक-साफ नहीं होते। इस केस से जुड़े सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं। हड़ताल फिर भी खत्म नहीं हुआ है। गलती किसकी है अस्पताल में लगे कैमरे से आसानी से ज्ञात हो जाता।
इस मुद्दे को इतना तूल देने की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन चूंकि मामला पश्चिम बंगाल का है और आरोपी मुस्लिम है, शायद इस लिए हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई बढ़ा, मामले को सांप्रदायिक रंग दे वोटों की ध्रुवीकरण से जुड़ा है। जूनियर डॉक्टरों से मिल कर लौटे आईएमए प्रमुख डॉ शांतनु सेन का कहना कि धरना में बाहरी लोग बैठकर हड़ताल की दिशा तय कर रहे हैं, इस आशंका को और भी ज्यादा बल देता है।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। मुंबई में एक जूनियर डॉक्टर ने सीनियर की प्रताड़ना और जातिसूचक गालियां देने से आत्म हत्या कर ली थी। हालांकि परिजन इसे हत्या बताते हैं। क्या उस समय डॉक्टर फैटरनिटी का खून नहीं खौला था? क्या इनकी नजर में मार-पीट का मामला हत्या से ज्यादा गंभीर है या फिर डॉक्टरों की हड़ताल राजनीति से प्रेरित है।
कारण जो कुछ भी हो डॉक्टरों की हठ से नुकसान आम लोगों का हो रहा है।
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