सवर्ण अधिकारियों को बड़ी-बड़ी जिम्मेवारी देने वाले मोदी कैसे करेंगे दलित-पिछड़ों का भला
द एक्सपोज़ एक्सप्रेस.
मैं पिछड़ा हूं, मैं अति पिछड़ा हूं का प्रलाप कर पिछड़े-अति पिछड़े का वोट लेने वाले प्रधानमंत्री मोदी चारों तरफ सवर्ण अधिकारियों को नियुक्त करते हैं। ये अधिकारी सवर्ण के साथ-साथ उस विचारधारा से संबंध रखते हैं जिसका मकसद दलित-पिछड़ों का शोषण कर उन्हें अपने देश में ही दोयम दर्जे का नागरिक बनाना है। दलित-पिछड़ों के आरक्षण में कमी, 13 प्वाइंट रोस्टर जैसै दलित-पिछड़ा(बहुसंख्यक) विरोधी सरकारी फरमान इसी विचारधारा का नतीजा है।
जानकारों का मानना है कि विवेकानंद फाउंडेशन अप्रत्यक्ष तौर पर मोदी सरकार को चला रही है। मोदी सरकार को अन्ना की सहायता से सरकार में लाने का श्रेय इसी संस्था को दिया जा रहा है। जानकारों का मानना है कि इस संस्था का संबंध आरएसएस से है, जिसे संस्था के लोग नकारते हैं। लेकिन इनके प्रकाशनों में दक्षिण पंथी विचारधारा साफ-साफ देखी जा सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस संस्था के संस्थापक निदेशक थे। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र और अतिरिक्त प्रधान सचिव पीके मिश्र भी कार्यभार संभालने से पहले इस संस्था से जुड़े रहे हैं। पीके मिश्र लंबे समय से मोदी से जुड़े रहे हैं। गुजरात बिजली नियामक बोर्ड के अध्यक्ष रहने के अलावा वे 2001-04 तक मोदी के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं। पीके मिश्रा का काम प्रशासन में नियुक्तियों को देखना है। वहीं नृपेंद्र मिश्र सरकार की नीतियां बनाने और विभिन्न मंत्रालयों में सामंजस्य बैठाने का काम करते हैं।
इन तीनों के अलावा रक्षा सचिव संजय मित्र और कैबिनेट सचिव पीके सिंहा भी सवर्ण हैं। एक आरटीआई के अनुसार कैबिनेट सचिवालय के 26 वरिष्ठ अधिकारियों में एक भी दलित-पिछड़ा नहीं था। ऐसी दुर्गति हुई है दलित-पिछड़ों की एक अतिपिछड़े के प्रधानमंत्री रहते। ये पांचों अधिकारी एनडीए-1 में भी थे। पांचों को एक्सटेंशन दिया गया है।
अब सवाल है कि जब सत्ता की चाबी सवर्णों के हाथ में है तो क्या वह दलित-पिछड़ों के कल्याण के लिए कोई कदम उठाएंगे? उदाहरणों को देखने से उत्तर नकारात्मक ही मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी पिछड़ों की वोट से सत्ता में आए हैं लेकिन सवर्णों के हित में दलित-पिछड़ों को पीछे धकेल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी घर का भेदी लंका ढाए मुहावरा को चरितार्थ कर रहे हैं।
कुछ लोग कह सकते हैं कि मोदी काबिल लोगों को अपने साथ रख रहे हैं। लेकिन उदाहरणों से ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। अजीत डोभाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहते पठानकोट, पुलवामा समेत कई बड़े हमले हुए हैं। उनकी कुछ उपलब्धियां भी हैं, लेकिन नाकामियों की लिस्ट ज्यादा लंबी है।
मैं पिछड़ा हूं, मैं अति पिछड़ा हूं का प्रलाप कर पिछड़े-अति पिछड़े का वोट लेने वाले प्रधानमंत्री मोदी चारों तरफ सवर्ण अधिकारियों को नियुक्त करते हैं। ये अधिकारी सवर्ण के साथ-साथ उस विचारधारा से संबंध रखते हैं जिसका मकसद दलित-पिछड़ों का शोषण कर उन्हें अपने देश में ही दोयम दर्जे का नागरिक बनाना है। दलित-पिछड़ों के आरक्षण में कमी, 13 प्वाइंट रोस्टर जैसै दलित-पिछड़ा(बहुसंख्यक) विरोधी सरकारी फरमान इसी विचारधारा का नतीजा है।
जानकारों का मानना है कि विवेकानंद फाउंडेशन अप्रत्यक्ष तौर पर मोदी सरकार को चला रही है। मोदी सरकार को अन्ना की सहायता से सरकार में लाने का श्रेय इसी संस्था को दिया जा रहा है। जानकारों का मानना है कि इस संस्था का संबंध आरएसएस से है, जिसे संस्था के लोग नकारते हैं। लेकिन इनके प्रकाशनों में दक्षिण पंथी विचारधारा साफ-साफ देखी जा सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस संस्था के संस्थापक निदेशक थे। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र और अतिरिक्त प्रधान सचिव पीके मिश्र भी कार्यभार संभालने से पहले इस संस्था से जुड़े रहे हैं। पीके मिश्र लंबे समय से मोदी से जुड़े रहे हैं। गुजरात बिजली नियामक बोर्ड के अध्यक्ष रहने के अलावा वे 2001-04 तक मोदी के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं। पीके मिश्रा का काम प्रशासन में नियुक्तियों को देखना है। वहीं नृपेंद्र मिश्र सरकार की नीतियां बनाने और विभिन्न मंत्रालयों में सामंजस्य बैठाने का काम करते हैं।
इन तीनों के अलावा रक्षा सचिव संजय मित्र और कैबिनेट सचिव पीके सिंहा भी सवर्ण हैं। एक आरटीआई के अनुसार कैबिनेट सचिवालय के 26 वरिष्ठ अधिकारियों में एक भी दलित-पिछड़ा नहीं था। ऐसी दुर्गति हुई है दलित-पिछड़ों की एक अतिपिछड़े के प्रधानमंत्री रहते। ये पांचों अधिकारी एनडीए-1 में भी थे। पांचों को एक्सटेंशन दिया गया है।
अब सवाल है कि जब सत्ता की चाबी सवर्णों के हाथ में है तो क्या वह दलित-पिछड़ों के कल्याण के लिए कोई कदम उठाएंगे? उदाहरणों को देखने से उत्तर नकारात्मक ही मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी पिछड़ों की वोट से सत्ता में आए हैं लेकिन सवर्णों के हित में दलित-पिछड़ों को पीछे धकेल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी घर का भेदी लंका ढाए मुहावरा को चरितार्थ कर रहे हैं।
कुछ लोग कह सकते हैं कि मोदी काबिल लोगों को अपने साथ रख रहे हैं। लेकिन उदाहरणों से ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। अजीत डोभाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहते पठानकोट, पुलवामा समेत कई बड़े हमले हुए हैं। उनकी कुछ उपलब्धियां भी हैं, लेकिन नाकामियों की लिस्ट ज्यादा लंबी है।
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