उन्मादी और विभाजनकारी जय श्री राम लोकतंत्र को कर रहे कमजोर
18 जून 2019 का दिन। संसद का सेंट्रल हॉल। हैदराबाद से सांसद ओवैसी शपथ लेने के लिए जैसे ही अपनी जगह से उठते हैं, एनडीए के 300 से ज्यादा सांसद जय श्रीराम और वंदे मातरम का नारा लगाने लगते हैं। ओवैसी उन्हें और ज्यादा जोर से नारा लगाने का इशारा करते हैं और शेर की तरह स्पीकर की कुर्सी की तरफ बढ़ते हैं, जहां उन्हें पद की शपथ लेना है।
संसद के इस वाकया को देखकर रामायण का सीन अनायास ही याद आ गया। श्रीराम के सिंहासन की तरफ बढते वक्त उनके अनुचर उनके मान में इसी तरह जय श्री राम का नारा लगाते दिखाए जाते थे। तो क्या भाजपाइयों ने ओवैसी को श्रीराम मान लिया?
भाजपाइयों के नारे के जवाब में शपथ लेने के बाद ओवैसी ने भी जय हिंद, जय भीम और अल्ला हू अकबर के नारे लगाए, जो कि भाजपाइयों की तुलना में सेक्युलर था।
भाजपाइयों की इस हरकत की हर ओर आलोचना हो रही है। सोशल मीडिया पर इसे बच्चों वाली हरकत बताई जा रही है। लोग कह रहे हैं कि बच्चों के इस खेल में ओवैसी बाजी मार गया।
कुछ अरसे पहले तक भाजपाइयों पर राम के नाम का राजनीतिक उपयोग करने का ही आरोप लगाया जाता था, लेकिन अब राम की मर्यादा को मिट्टी में मिलाने का भी आरोप लगाया जा रहा है। जो सही ही है। राम को भाजपाइयों ने विभाजन का प्रतीक बना दिया है, जो अब सड़क से संसद तक पहुंच गई है।
जय श्री राम नारा का उपयोग अपने चरम पर पहुंच चुका है। राम ने हिंदू-मुस्लिम की खाई को गहरा कर दिया है। जिसका राजनीति फायदा भाजपा को मिल रहा। राम के सहारे भाजपा ने अब तक अभेद बंगाल को भी भेद दिया है। कभी शांति प्राप्ति की इच्छा रखने वालों के लिए सिया-राम का जाप अमृत के समान था। भाजपा ने इससे सिया को निकाल फेंका। ठीक उसी तरह जिस तरह दूध से मक्खी निकाला जाता है। राम को नारा बना दिया। सिया-राम से राम की प्रक्रिया भाजपा की पितृसत्तात्मक सोच का परिचायक है। सिया के बिना राम भी अन्य पुरुषों की तरह उन्मादी होते जा रहे हैं। जोड़ने के बदले विभाजनकारी होते जा रहे हैं।
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में हाथ में तलवार लिए, दारू के नशे में चूर राजनीतिक कार्यकर्ता जब जय श्री राम का नारा लगाते हैं तो क्या हिंदू क्या मुस्लिम सभी के होश फाख्ता हो जाते हैं।
जय श्री राम का उपयोग शायद चरम पर पहुंच चुका है। चरम पर पहुंचने के बाद ढलान भी आती है। श्री राम भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। लोगों को नारा का असलियत समझ आने लगा है। जिन लोगों को समझ नहीं आ रहा है, उनके लिए राम द्वारा शूद्र शंभुक की मौत का प्रसंग है ही।
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