शव को पेड़ से लटकाकर न्याय मांगते हैं गुजराती
द एक्सपोज़ एक्सप्रेस.
शव को लटकाकर न्याय और मुआवजा मांगने की प्रथा है चाडोतारो। गुजरात के पोशिना, खेद्रम्हा, वडाली, विजयनगर जैसे आदिवासी इलाकों में यह काफी लंबे समय से प्रचलन में है। डुंगरी गरासिया भील आदिवासियों में यह सबसे अधिक प्रचलित है। मुआवजा मांगने के इस तरीके का उपयोग उस समय होता है जब मृतक के परिजन को मृत्यु का कारण अप्राकृतिक लगे।
अप्राकृतिक कारणों से मौत की आशंका होते ही परिजन शव के अंतिम संस्कार में देरी करने का निर्णय लेते हैं, जो कि महीनों तक हो सकती है और शव को कहीं लटका देते हैं, जिससे गुनाह करने वाला अपना जुर्म कबूल कर ले और मृतक के परिजनों को मुआवजा दे। मुआवजा को परिजनों और पंचायत अधिकारियों में बांट दिया जाता है।
पुलिस-प्रशासन इस प्रथा को बंद कराने में लगी है। इसके लिए समय-समय पर गिरफ्तारी भी होती है लेकिन इस तरह की प्रथा जो काफी लंबे समय से चल रही है उसे बंद करवाना इतना आसान नहीं।
शव को लटकाकर न्याय और मुआवजा मांगने की प्रथा है चाडोतारो। गुजरात के पोशिना, खेद्रम्हा, वडाली, विजयनगर जैसे आदिवासी इलाकों में यह काफी लंबे समय से प्रचलन में है। डुंगरी गरासिया भील आदिवासियों में यह सबसे अधिक प्रचलित है। मुआवजा मांगने के इस तरीके का उपयोग उस समय होता है जब मृतक के परिजन को मृत्यु का कारण अप्राकृतिक लगे।
अप्राकृतिक कारणों से मौत की आशंका होते ही परिजन शव के अंतिम संस्कार में देरी करने का निर्णय लेते हैं, जो कि महीनों तक हो सकती है और शव को कहीं लटका देते हैं, जिससे गुनाह करने वाला अपना जुर्म कबूल कर ले और मृतक के परिजनों को मुआवजा दे। मुआवजा को परिजनों और पंचायत अधिकारियों में बांट दिया जाता है।
पुलिस-प्रशासन इस प्रथा को बंद कराने में लगी है। इसके लिए समय-समय पर गिरफ्तारी भी होती है लेकिन इस तरह की प्रथा जो काफी लंबे समय से चल रही है उसे बंद करवाना इतना आसान नहीं।
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