हिंदू देवताओं का प्रिय भोग रहा गौमांस, बुद्ध के कारण माता का दर्जा
इंद्रदेव को सांड का मांस और अग्निदेव को सांड और गौ मांस का भोग चढ़ाया जाता था। मारूत और अश्विन को भी गौ मांस का भोग काफी प्रिय था। महाभारत में भी गौ मांस का जिक्र है। उसमें रंतीदेव नामक राजा का उल्लेख है जिन्होंने ब्राह्मणों को अनाज और गौ मांस का दान कर खूब मान-सम्मान कमाया। तैत्तिरीय ब्राह्मण में तो गौ मांस को साफ-साफ भोजन बता दिया गया है। याज्ञवल्क्य का गौमांस खाने के प्रति आग्रह सर्वविदित है। बाद के ब्राह्मणवादी ग्रथों में भी गोमांस खाने के काफी सारे सबूत हैं। यहां तक कि मनुस्मृति में भी गोमांस के सेवन पर प्रतिबंध नहीं दिखता।
देवताओं के भोग के अतिरिक्त गौमांस का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में भी होता रहा है। चरक संहिता के चिकित्सीय खंड (पृष्ठ 86-87) में गाय के मांस को विभिन्न रोगों की दवा के रूप में निर्धारित किया गया है। गौमांस को सूप बनाकर पीने का भी जिक्र है। इसे अनियमित बुखार, खपत, और उत्सर्जन के लिए एक इलाज के रूप में सशक्त रूप से सलाह दी जाती थी। गाय की चर्बी की सिफारिश दुर्बलता और गठिया के लिए की जाती थी।
इन सबूतों से स्पष्ट है कि गौंमांस संबंधित प्रचलित-प्रचारित तथ्यों और वास्तविकता के बीच गहरी खाई है। भारत में गौमांस का इतिहास प्रचारित तथ्यों के बिल्कुल उलटा है।
इस्लाम के प्रवेश के हजारों साल पहले से यहां गौमांस का सेवन होता रहा है।
घुमंतू आर्य लोग अपने साथ जानवरों को रखते थे और उन्हें खाते भी थे। इनमें से गाय भी एक थी। आगे के दिनों में देवताओं को प्रचारित करने के लिए इनकी सामूहिक बलि दिया जाने लगा, जो कि सैंकड़ों में होती थी। बुद्ध के समय तक पशु बलि जैसे कर्मकांड से ही ब्राह्मणों की पहचान जुड़ी थी। गौतम के बुद्ध बनने के समय यह प्रथा अपने शबाब पर थी। दीघ निकाय में एक कहानी के अनुसार, जब बुद्ध मगध की यात्रा कर रहे थे, तो कूटदंत नामक एक ब्राह्मण 700 बैल, 700 बकरियों और 700 मेढ़ों के साथ एक यज्ञ की तैयारी कर रहा था।
गाय और दूसरे जानवरों के कृषि उपयोगिता को देखते हुए बुद्ध को इनकी बलि पर चिंता हुई और उन्होंने पशु-हत्या को नाजायज बताया। बुद्ध की अहिंसा की बात लोगों को अच्छी लगने लगी और वे बुद्ध धर्म की दीक्षा लेने लगे। इससे ब्राह्मणों में खलबली मच गई। ब्राह्मण धर्म के अनुयायियों की कम होती संख्या को देखते हुए ब्राह्मणों ने गौ बलि जैसी प्रथा में कमी की। बीते समय के साथ गाय को माता का दर्जा दिया जाने लगा। लेकिन आज भी, खासकर दक्षिण भारत में हर वर्ण के लोग गौमांस का सेवन करते हैं।
गौमांस पर प्रतिबंध धर्म से जुड़ा मामला कतई नहीं है। यह सभ्यता और विकसित सोच से जुड़ा मामला है। किसी भी तरह की हत्या अमानवीय है। अतः एक धर्म के लोगों द्वारा दूसरे धर्म के लोगों से धार्मिक आधार पर इसके सेवन पर जबरदस्ती प्रतिबंध लगाना तार्किक नहीं है।
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