आईएएस में लैटरल इंट्री आरक्षण खत्म करने की दिशा में एक कदम या फिर प्रशासन के निजीकरण की तैयारी
द एक्सपोज़ एक्सप्रेस.
पिछले साल निजी क्षेत्र के 9 अधिकारियों को सरकार में सचिव के पद के समानांतर नियुक्त किया गया। बिना किसी परीक्षा को पास किए। अभी 40 पद और इसी व्यवस्था के तहत भरा जाना है। सरकार का मानना है निजी क्षेत्र की प्रतिभा को सरकार में लाकर प्रशासन की क्षमता को धार दिया जाएगा। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? पूर्व अधिकारीगण इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है, आईएएस की सबसे पहली पोस्टिंग एसडीएम के तौर पर होती है। उसी समय से वह विभिन्न वातावरण में रहता है। विभिन्न समाज और क्षेत्र की जरुरतों को समझता-बूझता है। किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए वह जो निर्णय लेता है, वह समाज के सभी वर्गों की महत्वकांक्षा का निचोड़ होता है। दूसरी ओर निजीक्षेत्र की कार्यशैली इससे उलटा है। निजीक्षेत्र के सारे फैसले कंपनी मालिकों के फायदे के लिए किए जाते हैं। आम जनता और कंपनी के अधिकारियों के बीच किसी भी तरह का संवाद मौजूद नहीं रहता। इस स्थिति में इन अधिकारियों को सीधे सचिव स्तर पर नियुक्त कर देना प्रशासन की क्षमता को कुंद कर दे इसकी ज्यादा गुंजाइश है।
पूर्व सांसद उदित राज और अन्य रिटायर दलित नौकरशाहों ने लैटरल इंट्री को असंवैधानिक बताया है। इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। पिछले साल हुए 9 लैटरल इंट्री में से एक भी पद पर अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को नहीं चुना गया। जबकि डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग के अनुसार किसी भी पद पर 45 दिन से अधिक समय के लिए नियुक्ति होने पर चाहे वह कांट्रैक्ट पर ही क्यों न हो आरक्षण के नियम का पालन करना होगा।
इस संबंध में इंडियन एक्सप्रेस अखबार द्वारा मांगे गए आरटीआई के जवाब में बताया गया कि सभी क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए एक-एक वैकेंसी निकाली गई है और एक वैकेंसी में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। उदित राज ने सरकार के इस कदम को आरक्षण व्यवस्था से खिलवाड़ और उसे खत्म करने की साजिश कहा है। अब प्रश्न उठता है जब इन अधिकारियों की नियुक्ति में सरकार के नियम लागू नहीं हो रहे तो फिर ये सरकार के अंग कैसे? क्या इन्हें सलाहकर के तौर पर नहीं रखा जा सकता था?
लैटरल इंट्री से सिर्फ आरक्षित वर्ग ही चिंतित नहीं हैं बल्कि सामान्य वर्ग में भी चिंता देखी जा सकती है। सरकार पहले ही वैकेंसी कम कर चुकी है और अब लैटरल इंट्री के कारण वैकेंसी की संख्या और भी कम हो जाएगी। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों ने सरकार के इस कदम को गरीब और मध्यम वर्गीय छात्रों के साथ धोखा बताया है। उनका कहना है बड़ी-बड़ी कंपनियों और निजीक्षेत्र के ऊंचे पदों पर ज्यादातर लोग अपने जान-पहचान के बल पर पहुंचते हैं। मानदंडों का अभाव होता है। ऐसे में सरकार गलत दिशा में बढ़ रही है। उन्होंने इसमें खरीद फरोख्त की भी आशंका जाहिर की है।
लैटरल इंट्री के माध्यम से निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों द्वारा प्रशासन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की भरपूर कोशिश की जाएगी। कर्तव्यनिष्ठ आईएएस निजीक्षेत्र के ज्यादा-ज्यादा मुनाफा कमाने के मंसूबों पर पानी फेरते रहे हैं। इसलिए वे अपने अधिकारियों को सरकारी तंत्र में घुसाने की कोशिश में लगातार लगे होंगे। भारतीय जनता पार्टी जिसे उद्योगपतियों की सरकार कहा जाता है में उनकी मंशा पूरी हो गई।
लैटरल इंट्री आम लोगों खासकर दलित-पिछड़ों के लिए कितना भी दुष्परिणाम लेकर आया हो, लेकिन उद्योगपतियों के लिए यह वरदान है। इस इंट्री के जरिए उद्योगपति अपने मनमाफिक नितियां बनवाने में सफल होंगे इसमें कोई दो राय नहीं।
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