जिसे पाने के लिए लोग लाखों खर्च करते हैं लालू प्रसाद यादव ने उसे क्यों जाने दिया?
भारतीय मीडिया और राजनैतिक विरोधी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को तथाकथित चारा घोटाला को लेकर लगातार बदनाम करते रहते हैं। इस तरह ये लोग संगठित तरीके से लालू प्रशंषकों के बीच उनकी छवि धूमिल करने की फ़िराक़ में लगे रहते हैं। राजनैतिक विरोधी तो ऐसा करेंगे ही, लेकिन मीडिया इस तरीके से लालू प्रसाद यादव के पीछे क्यों पड़ी रहती है जब चारा घोटाला के मास्टरमाइंड स्वर्गीय जग्गन्नाथ मिश्रा थे और लालू ने चारा घोटाला के जांच के आदेश दिए थे।
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें भारतीय मीडिया के ढाँचे को समझना होगा। भारतीय मीडिया में 75 % से अधिक हैं ब्राह्मण हैं। सवर्णों की बात करे तो वे भारतीय मीडिया में 95 % से अधिक पाए जाते हैं। लालू प्रसाद यादव ने मीडिया में कुंडली मारकर बैठे इन्हीं लोगों के कौम के सामंती रवैये पर प्रहार कर दलित-पिछड़े को उनका अधिकार दिलाया। इसलिए लालू प्रसाद यादव को देखकर या उनका नाम सुनते ही इनके शरीर में कम्पन शुरू हो जाती है और जुबान लडख़ड़ाने लगती है, जिसके परिणाम स्वरुप वे लोग कुछ भी बकने लगते हैं।
लालू प्रसाद यादव
लालू अच्छाईओं के खजाना हैं। निष्पक्ष पत्रकार इस बात को जानते हैं और लिखते हैं, किन्तु ऐसे पत्रकारों की संख्या काफी काम है। इस कारण लालू प्रसाद यादव की अच्छाइयाँ लोगों के सामने नहीं आ पाती। लोग जातिवादी पत्रकारों के द्वारा बनाये गए उनकी छवि और उनकी ओर से फैलाए गए झूठ को ही लालू प्रसाद यादव का असली चेहरा मान लेते हैं।
पटना विश्वविद्यालय सिंडिकेट ने साल 2004 में लालू प्रसाद को मानद डॉक्टरेट डिग्री देने का रेजोलुशन पास किया था। प्रस्ताव तत्कालीन सीनेटर भीम सिंह ने सिंडिकेट के सामने रखा था। सब कुछ फाइनल हो जाने के बाद भाजपा और इसके विद्यार्थी संगठन ने इसका विरोध करना शुरु कर दिया। भाजपा का कहना था की एक चार्जशीट किए हुए व्यक्ति को मानद उपाधि नहीं दी जानी चाहिए। विरोध कोई बड़ा नहीं था लेकिन फिर भी लालू प्रसाद यादव ने इस मानद उपाधि को लेने से मना कर दिया। ऐसा उन्होंने तब किया जब सर्वविदित है कि मानद डॉक्टरेट उपाधि पाने के लिए लोग विश्वविद्यालय को बैकडोर से बड़ी-बड़ी रकम देते हैं। एक आरटीआई से ज्ञात हुआ कि भारत के सैंकड़ों नेता और अधिकारियों ने विश्वविद्यालयों का इंचार्ज रहते खुद को ही उस विश्वविद्यालय का मानद डॉक्टरेट डिग्री दे दिया। इसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी और प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का भी नाम शामिल है। मानद डॉक्टरेट डिग्री हिस्ट्रीशीटर को भी दिए जाने के कई उदहारण हैं। ऐसे में लालू प्रसाद यादव द्वारा किया गया यह त्याग बड़ी बात है। लालू प्रसाद यादव ने कहा था की मैंने कभी भी ऐसी किसी उपाधि पाने की हसरत नहीं रखी थी।
पटना विश्वविद्यालय ने साल 2011 में ऐसी ही कोशिश बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी मानद डिग्री देने की कोशिश की थी लेकिन नीतीश कुमार ने भी लालू प्रसाद यादव के रास्ते पर चलते हुए इसे लेने से मन कर दिया।
नीतीश कुमार
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें भारतीय मीडिया के ढाँचे को समझना होगा। भारतीय मीडिया में 75 % से अधिक हैं ब्राह्मण हैं। सवर्णों की बात करे तो वे भारतीय मीडिया में 95 % से अधिक पाए जाते हैं। लालू प्रसाद यादव ने मीडिया में कुंडली मारकर बैठे इन्हीं लोगों के कौम के सामंती रवैये पर प्रहार कर दलित-पिछड़े को उनका अधिकार दिलाया। इसलिए लालू प्रसाद यादव को देखकर या उनका नाम सुनते ही इनके शरीर में कम्पन शुरू हो जाती है और जुबान लडख़ड़ाने लगती है, जिसके परिणाम स्वरुप वे लोग कुछ भी बकने लगते हैं।
लालू प्रसाद यादव
लालू अच्छाईओं के खजाना हैं। निष्पक्ष पत्रकार इस बात को जानते हैं और लिखते हैं, किन्तु ऐसे पत्रकारों की संख्या काफी काम है। इस कारण लालू प्रसाद यादव की अच्छाइयाँ लोगों के सामने नहीं आ पाती। लोग जातिवादी पत्रकारों के द्वारा बनाये गए उनकी छवि और उनकी ओर से फैलाए गए झूठ को ही लालू प्रसाद यादव का असली चेहरा मान लेते हैं।
पटना विश्वविद्यालय सिंडिकेट ने साल 2004 में लालू प्रसाद को मानद डॉक्टरेट डिग्री देने का रेजोलुशन पास किया था। प्रस्ताव तत्कालीन सीनेटर भीम सिंह ने सिंडिकेट के सामने रखा था। सब कुछ फाइनल हो जाने के बाद भाजपा और इसके विद्यार्थी संगठन ने इसका विरोध करना शुरु कर दिया। भाजपा का कहना था की एक चार्जशीट किए हुए व्यक्ति को मानद उपाधि नहीं दी जानी चाहिए। विरोध कोई बड़ा नहीं था लेकिन फिर भी लालू प्रसाद यादव ने इस मानद उपाधि को लेने से मना कर दिया। ऐसा उन्होंने तब किया जब सर्वविदित है कि मानद डॉक्टरेट उपाधि पाने के लिए लोग विश्वविद्यालय को बैकडोर से बड़ी-बड़ी रकम देते हैं। एक आरटीआई से ज्ञात हुआ कि भारत के सैंकड़ों नेता और अधिकारियों ने विश्वविद्यालयों का इंचार्ज रहते खुद को ही उस विश्वविद्यालय का मानद डॉक्टरेट डिग्री दे दिया। इसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी और प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का भी नाम शामिल है। मानद डॉक्टरेट डिग्री हिस्ट्रीशीटर को भी दिए जाने के कई उदहारण हैं। ऐसे में लालू प्रसाद यादव द्वारा किया गया यह त्याग बड़ी बात है। लालू प्रसाद यादव ने कहा था की मैंने कभी भी ऐसी किसी उपाधि पाने की हसरत नहीं रखी थी।
पटना विश्वविद्यालय ने साल 2011 में ऐसी ही कोशिश बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी मानद डिग्री देने की कोशिश की थी लेकिन नीतीश कुमार ने भी लालू प्रसाद यादव के रास्ते पर चलते हुए इसे लेने से मन कर दिया।
नीतीश कुमार
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