क्या भारत ने नाथू-ला से कुछ नहीं सीखा? क्या है नाथू-ला का पाकिस्तान कनेक्शन?
ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि लद्दाख में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को बिना हथियार के रहने को कहा गया था। चीन जो की बीते कुछ सप्ताह से आक्रामक रुख अपनाए हुए है और बार-बार हो रहे स्टैन्डॉफ के बावजूद पीछे हटने को तैयार नहीं है, उसके सामने निहत्थे सैनिकों को भेजना क्या उचित था, जब हम जानते हैं कि चीन गद्दारी और पीठ में छूरा भोकने के लिए जाना जाता है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब चीन ने धक्का-मुक्की के बाद अचानक हम पर हमला किया है।
लेकिन हम अपनी पिछली गलतियों से ज्यादा कुछ नहीं सीख रहे। हम बात कर रहे हैं 1967 में हुए भारत-चीन संघर्ष की, जिसे दूसरा भारत-चीन युद्ध भी कहा जाता है और जिसमें भारत को विजय प्राप्त हुई थी।
लेकिन हम अपनी पिछली गलतियों से ज्यादा कुछ नहीं सीख रहे। हम बात कर रहे हैं 1967 में हुए भारत-चीन संघर्ष की, जिसे दूसरा भारत-चीन युद्ध भी कहा जाता है और जिसमें भारत को विजय प्राप्त हुई थी।
जिस तरह से आज सीमावर्ती कई इलाकों से भारत-चीन सैनिकों के बीच हाथापाई की खबरें आ रही हैं तब भी कुछ ऐसा ही हाल था। इस तरह की संघर्ष नाथू-ला में भी 1963 के बाद बढ़ गयी थी। नाथू-ला के उत्तरी सिरे पर चीन का जबकि दक्षिणी हिस्से पर भारत का कब्ज़ा था।
भारत-पाक युद्ध 1965 के दौरान अयूब खान ने चुपके से चीन का दौरा किया था और चीन से भारत को दबाने की मदद मांगी थी। परिणाम स्वरुप चीन ने भारतीय सेना को नाथू-ला और जेलेप-ला खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया। जिसके बाद भारतीय कॉर्प हेडक्वार्टर ने स्थानीय कमांडर को नाथू-ला और जेलेप-ला खाली करने का आदेश दे दिया था। जेलेप-ला को तो भारतीय सेना ने खाली कर दिया, लेकिन जीओसी माउंटेन डिवीज़न के मेजर जनरल सगत सिंह ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए नाथू-ला को खाली करने के लिखित आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।
भारत-पाक युद्ध 1965 के दौरान अयूब खान ने चुपके से चीन का दौरा किया था और चीन से भारत को दबाने की मदद मांगी थी। परिणाम स्वरुप चीन ने भारतीय सेना को नाथू-ला और जेलेप-ला खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया। जिसके बाद भारतीय कॉर्प हेडक्वार्टर ने स्थानीय कमांडर को नाथू-ला और जेलेप-ला खाली करने का आदेश दे दिया था। जेलेप-ला को तो भारतीय सेना ने खाली कर दिया, लेकिन जीओसी माउंटेन डिवीज़न के मेजर जनरल सगत सिंह ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए नाथू-ला को खाली करने के लिखित आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।
इसके बाद 13 अगस्त 1967 से चीनी सैनिकों ने सिक्किम की तरफ वाले हिस्से में लम्बा-गहरा गड्ढा खोदना शुरु किया। जब भारतीय सैनिकों ने यह देखा तो चीनी सेना को ऐसा करने से मना किया। चीनी सेना ने खुदाई बंद कर दी और लौट गए।
स्थिति को देखते हुए भारतीय सैनिकों ने सीमा निर्धारण के लिए काँटेदार तार लगाना शुरु किया। इसका चीनी स्थानीय कमांडर ने विरोध किया। 7 सितम्बर को चीनी सैनिक फिर आए और वार्निंग देने लगे जो हाथापाई और धक्कामुक्की में बदल गयी। 11 सितम्बर को वरिष्ठ अधिकारियों की आदेश के अनुसार सैनिकों ने पहले से लगाए गए कांटेदार तार के उत्तर में एक और फेंसिंग करनी शुरु कर दी। यह देख चीनी सैनिक आए और ऐसा करने से मना करने लगे। वहां उपस्थित कर्नल ने उसे बताया कि उन्हें ऐसा करने का आदेश मिला है। दोनों सेना एक बार फिर बहस और धक्का-मुक्की में उलझ गयी। कुछ देर बाद चीनी सेना बंकर में लौट गयी। भारतीय सेना की टुकड़ी फेंसिंग के अपने काम में लग गयी। इतने में ही चीनी सैनिक लाइट मशीन गन लेकर वापस लौटे और फेंसिंग में मशगूल भारतीय सेना पर ताबरतोड़ फायरिंग करने लगे। इस कार्रवाई में 50 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। कुछ देर बाद चीनी सेना ने आर्टिलरी का भी प्रयोग किया। लेकिन अब बारी भारत की थी। भारत ने भी आर्टिलरी का प्रयोग किया। तीन दिन तक दोनों तरफ से गोलीबारी होती रही। पांचवे दिन सीजफायर बुलाया गया। कहा जाता है की इस युद्ध में 88 भारतीय और 340 चीनी सैनिक मारे गए।
भारतीय सैनिकों ने नाथू -ला से कुछ दूर स्थित चो-ला में भी ऐसी ही आक्रामकता 1 अक्टूबर को दिखाई। जिसके बाद चीनी सेना को तीन किलोमीटर पीछे हटना पड़ा ।
नाथू-ला में तीन दिन के भीतर चीन के 340 सैनिक मारे गए थे , जबकि 1962 के युद्ध में जो 2 महीने चली थी उसमें उनके मात्र 700 के करीब सैनिक मारे गए थे। भारत की आक्रामकता को देख कर चीनी हतप्रभ थे।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार जब आप चीनी सेना के सामने आक्रमकता दिखाते हैं तो चीनी सेना औकात में रहती है, वरना वो आपके छाती पर चढ़ जाती है। भारत ने यहीं गलती कर दी। मोदी सरकार ने लद्दाख में कब्ज़े की बात छुपाई जिससे चीनी सेना का मनोबल बढ़ा और वे ऐसी धृष्टता को अंजाम दे बैठे। भारत को आक्रामक होने की जरुरत है। ऐसी बात मेजर जनरल जीडी बक्शी समेत दूसरे रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व सैन्य अधिकारी भी कह रहे हैं।
स्थिति को देखते हुए भारतीय सैनिकों ने सीमा निर्धारण के लिए काँटेदार तार लगाना शुरु किया। इसका चीनी स्थानीय कमांडर ने विरोध किया। 7 सितम्बर को चीनी सैनिक फिर आए और वार्निंग देने लगे जो हाथापाई और धक्कामुक्की में बदल गयी। 11 सितम्बर को वरिष्ठ अधिकारियों की आदेश के अनुसार सैनिकों ने पहले से लगाए गए कांटेदार तार के उत्तर में एक और फेंसिंग करनी शुरु कर दी। यह देख चीनी सैनिक आए और ऐसा करने से मना करने लगे। वहां उपस्थित कर्नल ने उसे बताया कि उन्हें ऐसा करने का आदेश मिला है। दोनों सेना एक बार फिर बहस और धक्का-मुक्की में उलझ गयी। कुछ देर बाद चीनी सेना बंकर में लौट गयी। भारतीय सेना की टुकड़ी फेंसिंग के अपने काम में लग गयी। इतने में ही चीनी सैनिक लाइट मशीन गन लेकर वापस लौटे और फेंसिंग में मशगूल भारतीय सेना पर ताबरतोड़ फायरिंग करने लगे। इस कार्रवाई में 50 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। कुछ देर बाद चीनी सेना ने आर्टिलरी का भी प्रयोग किया। लेकिन अब बारी भारत की थी। भारत ने भी आर्टिलरी का प्रयोग किया। तीन दिन तक दोनों तरफ से गोलीबारी होती रही। पांचवे दिन सीजफायर बुलाया गया। कहा जाता है की इस युद्ध में 88 भारतीय और 340 चीनी सैनिक मारे गए।
भारतीय सैनिकों ने नाथू -ला से कुछ दूर स्थित चो-ला में भी ऐसी ही आक्रामकता 1 अक्टूबर को दिखाई। जिसके बाद चीनी सेना को तीन किलोमीटर पीछे हटना पड़ा ।
नाथू-ला में तीन दिन के भीतर चीन के 340 सैनिक मारे गए थे , जबकि 1962 के युद्ध में जो 2 महीने चली थी उसमें उनके मात्र 700 के करीब सैनिक मारे गए थे। भारत की आक्रामकता को देख कर चीनी हतप्रभ थे।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार जब आप चीनी सेना के सामने आक्रमकता दिखाते हैं तो चीनी सेना औकात में रहती है, वरना वो आपके छाती पर चढ़ जाती है। भारत ने यहीं गलती कर दी। मोदी सरकार ने लद्दाख में कब्ज़े की बात छुपाई जिससे चीनी सेना का मनोबल बढ़ा और वे ऐसी धृष्टता को अंजाम दे बैठे। भारत को आक्रामक होने की जरुरत है। ऐसी बात मेजर जनरल जीडी बक्शी समेत दूसरे रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व सैन्य अधिकारी भी कह रहे हैं।
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