शूद्र शिवाजी का राजतिलक करने से मना करने वाले क्यों हैं मोदी को सिर पर बैठाए



सवर्णों की उंगलियां और मुंह मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और मायावती सरीखे नेता/नेत्री जो कि एक तरह से दलित-पिछड़ों के लिए रहनुमा हैं के खिलाफ घृणा और झूठ फैलाते नहीं थकती। दूसरी तरफ अति-पिछड़े मोदी जिनकी जात ब्राह्मणीय व्यवस्था में आंशिक अछूत की श्रेणी में आती है को वे अपने सिर पर बैठाए हुए हैं। 
सवर्णों में एक नीची जात के व्यक्ति को अपने सिर पर बैठाने की परंपरा रही ही नहीं है। नीची जात का व्यक्ति चाहे कितना भी ज्ञानी, बलवान या शौर्यवान क्यों न रहा हो द्विजों के मन में हमेशा उनके लिए कुंठा ही रही है। लिखित और मौखिक हर प्रकार से उनके खिलाफ उन्होंने दुष्प्रचार किया। प्राचीन काल से अब तक ऐसी ही परंपरा चली आ रही है। प्राचीन काल में एकराष्ट्र का सपना देखने वाले नंद वंश के सम्राट हो या फिर मध्ययुग में छत्रपति शिवाजी महाराज, द्विजों ने सबका अपमान किया। शूद्र होने के कारण उन्होंने शिवाजी महाराज का राजतिलक करने से मना कर दिया था। शिवाजी को कई वर्ष इंतजार करना पड़ा, जिसके बाद उनका राजतिलक हो सका। संयंत्र के तहत उनके मकबरे को भी गुमनाम बना दिया गया, जिसे बाद में ज्योतिबा फूले ने खोजा।  शूद्रों को ठगने और उन्हें मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने के लिए आज शिवाजी को हिंदू रक्षक के तौर पर सवर्णों ने खड़ा कर दिया है, जिस कारण मौजूदा दौर में उनके खिलाफ ऊंची जात के लोग बुरा-भला नहीं कहते या लिखते। जबकि इतिहासकारों का मत है कि शिवाजी एक धर्मनिरपेक्ष सम्राट थे। उनकी सेना में काफी मुसलमान थे और मुसलमानों से उनका रिश्ता काफी प्रगाढ़ था। दूसरी ओर हजाम जात से संबंध रखने वाले नंद वंश के सम्राटों के खिलाफ ये लोग आज तक अपनी मीडिया और टीवी के जरिए झूठ फैला रहे हैैं।
 गुलाम भारत की बात करें तो उस समय भी नीची जात के लोगों यानी राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले और स्वामी विवेकानंद को उनके प्रगतिशील विचारों के कारण हर तरीके से प्रताड़ित करने की कोशिश हुई। उनके लिए गंदे शब्द प्रयोग किए गए। उन्हें जान से मारने की कोशिश की गई। प्रगतिशील विचारों वाले हर दलित-पिछड़े के साथ वो आजतक यही करते आ रहें। लालू, मुलायम और मायावती सरीखे नेता/नेत्री उनके इसी विचारधारा के शिकार हुए हैं। 
जबकि "मैं अतिपिछड़ा हूं" कह-कह कर खुद के लिए वोट मांगने वाले मोदी की महिमामंडन करते वो नहीं थकते। आखिर कारण क्या है? सवर्ण आखिर अपने ट्रेंड से भटक कैसे रहे हैं? क्या भारत में जातिप्रथा खत्म हो गई? या फिर मोदी के कारण भारत विश्वगुरु बन गया है जिससे सवर्णों का हृदय परिवर्तन हो गया है?
नहीं। इस सभी प्रश्नों का उत्तर केवल एक शब्द है "नहीं"। न तो जातिप्रथा खत्म हुई है और न तो भारत विश्व गुरु बन पाया है। जातीयता की बात करें तो यह आज चरम पर है। कट्टर जातिवादी संगठन का एक अंग केंद्र की सत्ता में विराजमान है।  भारत की अर्थव्यवस्था धड़ाम से गिर चुकी है। भुखमरी और भ्रष्टाचार में भी हमारा देश शीर्ष पर है। अतः विश्व गुरु वाला एंगल भी फिट नहीं बैठ रहा।
         मोदी की महिमामंडन और मुलायम, लालू और मायावती के खिलाफ दुष्प्रचार का केवल एक कारण है वह है शिक्षा। ये तीनों उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। मुलायम BA, MA और BT हैं और लालू ने BA, LLB और MA किया है। मायावती भी पीछे नहीं हैं। उनका भी शैक्षणिक रिकॉर्ड काफी अच्छा है। उन्होंने भी BA, LLB और  B.Ed किया है। मुलायम और माया राजनीति में आने से पहले सरकारी शिक्षक हुआ करते थे। जबकि लालू सरकारी क्लर्क थे। दूसरी ओर मोदी की डिग्री संदिग्ध है। कयास और भी गहरे हो जाते हैं जब मोदी की डिग्री संबंधित RTI का उत्तर नहीं दिया जाता।
अपनी शिक्षा के कारण ये तीनों जिस समुदाय से आते हैं अर्थात दलित-पिछड़ा समुदाय, उन समुदायों का भला-बुरा इन तीनों को अच्छे से पता है। ये तीनों सवर्णों या फिर यूं कहें कि द्विजों की मनमानी चलने नहीं देते। लेकिन अल्प शिक्षित मोदी अपना पद बचाए रखने के लिए द्विजों द्वारा उठाए जा रहे हर मांग जो कि उनके अपने समुदाय अर्थात ब्राह्मणीय व्यवस्था के शूद्र समाज के लिए हानिकारक है सबको अपनी सहमति दे रहे हैं। लालू-मुलायम ने जिस ब्राह्मणीय व्यवस्था से लड़कर अपने कौम को आरक्षण दिलाया था, अतिपिछड़े मोदी उस आरक्षण के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं। मोदी के कार्यकाल में संविधान संशोधन कर सवर्णों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। जबकि वे पहले ही अपने जनसंख्या अनुपात से कई गुणा अधिक संख्या में सरकार के हर अंग में बैठे हैं। मोदी के कार्यकाल में ही दलित-पिछड़ों को विश्वविद्यालयों में पढ़ाने से रोकने के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर लाया गया था जिसे भारी जन दबाव के बीच सरकार को वापस लेना पड़ा। मोदी कैबिनेट में 24 में से केवल 3 मंत्री दलित-पिछड़े समुदाय से हैं। मोदी सरकार आइएएस में लैटरल इंट्री लाई है, जिसके द्वारा चुने गए पहले बैच के अधिकारियों में से करीब 80% द्विज हैं। दलित-पिछड़े एक भी नहीं। मोदी के पहले कार्यकाल में ज्यादातर दलितों पर हमले होते थे लेकिन दूसरे कार्यकाल में पिछड़ों पर भी खूब हमले हो रहे हैं। पहले तो यादवों को मारा गया और अब कुर्मियों पर खुलेआम हमले हो रहे हैं और उन्हें उनकी औकात बताई जा रही है। सबसे बड़ी बात की उनकी शिकायत भी थाने में नहीं लिखी जा रही ऐसा मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है। शहादत में भी जातिवाद का घिनौना खेल एक मुख्यमंत्री के द्वारा खेला गया। मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में प्रधानमंत्री कार्यालय में 89 सचिव स्तर के अधिकारियों में से एक भी अधिकारी पिछड़ा कौम का नहीं है। मोदी के प्रधानमंत्री रहते ही sc/st एक्ट जैसे संवेदनशील मुद्दे को भी कमजोर करने का प्रयास किया गया। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश सरकार ने जब सरकारी नौकरी में पिछड़ों के आरक्षण को बढ़ाया तो मोदी काल में ही आरक्षण बढ़ाने के फैसले को पलटा गया।
 यह मात्र एक छोटी सी झलक है। मोदी ने अपने काल में दलित-पिछड़ों की कीमत पर सवर्णों को खूब फायदा पहुंचाया है। यही कारण है कि सवर्ण मोदी नाम का जयकारा लगाते रहते हैं। अशिक्षित दलित-पिछड़ों के सामने वो जानबूझ कर मोदी की जयकारा लगाते हैं ताकि उनका माइंडवॉश हो सके। बात अलग है कि जब वो अपने कौम(जात) के लोगों से बात करते हैं तो मोदी और उनकी जाति का मजाक जरूर उड़ाते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

अमात जाति का इतिहास

क्या चमार जाति के लोग ब्राह्मणों के वंशज है?

नंदवंश - प्रथम शूद्र राजवंश