अहीर रेजिमेंट हक है हमारा ट्रेंड कराने के पीछे क्या है बीजेपी का मकसद

बीते 6 जून को अहीर रेजिमेंट हक़ है हमारा  ट्विटर पर ट्रेंड कराया गया। यह चार लाख से अधिक बार रीट्वीट किया गया। समझने वाली बात है की अकेले यादवों के पास इतने संसाधन नहीं हैं की वो अपने समाज से जुड़े मुद्दे को चार लाख से अधिक बार रीट्वीट करा लें। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी अखिलेश यादव ने अहीर रेजिमेंट की मांग उठाई थी। इसे ट्वीटर पर ट्रेंड करने की कोशिश भी हुई थी, लेकिन इतने रीट्वीट नहीं हो पाए थे। रीट्विटों की संख्या इससे काफी कम थी। अब प्रश्न उठता है कि इस बार इतना रीट्विट कैसे संभव हो पाया? किन लोगों की मेहनत इसके पीछे थी? किन लोगों ने इसे मुमकिन बनाया?



भाजपा आईटी सेल ने मुमकिन बनाया 

जवाब है भाजपा आईटी सेल के सदस्य। जवाब जानकर आप चौंके होंगे लेकिन यही सच्चाई है। ध्यान देने वाली बात है कि अहीर रेजिमेंट हक है हमारा  को 7 जून को संपन्न हुए गृहमंत्री अमित शाह की वर्चुअल रैली से ठीक एक दिन पहले ट्रेंड कराई गयी। रैली कुछ महीने में होने वाली बिहार चुनाव के मद्देनजर आयोजित की गई थी।
बिहार में मुख्य विपक्ष राजद है, जिसके सुप्रीमो लालू यादव हैं। भाजपा बिहार और उत्तरप्रदेश दोनों राज्यों की यादवों नेतृत्व वाली पार्टी(सपा/राजद) पर जातिवाद करने का आरोप लगाती है। भाजपा अपने मीडिया के माध्यम से लगातार झूठ फैलाती है कि यादव अन्य पिछड़ी जातियों का हक मारती है। भाजपा के इस झूठ से सपा-राजद का पिछड़ा वोट बैंक पहले से कमजोर हुआ है।

यादवों को जातिवादी दिखाने और ओबीसी में फूट डालने की कोशिश 

तो क्या ट्रेंड कराने के पीछे यादवों को फिर से जातिवादी घोषित कर देने का प्लान है, जिससे पिछड़े वर्ग से संबंधित दूसरी जातियों के लोग यादव नेतृत्व वाले पार्टी से और दूर हो जाएं जिसका फायदा भाजपा को मिले?
इस ट्विटर ट्रेंड में भारी संख्या में पांडेय , मिश्रा, उपाध्याय जैसे सरनेम वालों में भाग लिए। इन सब का परिचय खंगालने पर पता चलता है की ये सब बीजेपी से जुड़े लोग हैं।  ये वही लोग हैं जो दिन रात लालू , मुलायम अखिलेश, आंबेडकर, यहाँ तक की बुद्ध जैसे महात्मा तक के खिलाफ ट्विटर पर गंदे गंदे पोस्ट शेयर करते हैं और आरक्षण के खिलाफ लिखते हैं बात अलग है की इनका खुद का अस्तित्व ही आरक्षण पर टिकी  हुई है।

उचित समय पर हो मांग 

यादव रेजिमेंट सच में यादवों का हक़ है।  1962 के रेज़ांगला के यादव वीरों को कोण भूल सकता है, जिनकी 125 सैनिकों की टुकड़ी ने पांच हजार चीनी सैनिकों को धूल चटा दिया था। लेकिन यह मांग समय देख कर की जानी चाहिए। इस मांग को मनवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी होगी, सिर्फ ट्विटर पर ट्रेंड करने से ज्यादा कुछ नहीं होने वाला है, उच्च न्यायालय ने आगे किसी भी रेजिमेंट के जातीय नामकरण पर रोक लगाया हुआ है। 

भाजपा के चाल में फंसे यादव 

इस तरह के विषय को ट्रेंड कराने में भाजपा की मदद कर यादव भाजपा की चाल का शिकार हो गए हैं , ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भाजपा आईटी सेल ने ब्सफ़ जवान तेज बहादुर यादव की कितनी इज्जत ख़राब की थी यह सोचने वाली बात है।  इन घटनाओं से साफ़ हो जाता है की भाजपा आईटी सेल इस विषय को ट्रेंड कराकर यादवों की प्रतिष्ठा ख़राब करना चाहती है और उसका प्रयास वोटों का ध्रुवीकरण है। यादवों को उनके जाल में नहीं फंसनी चाहिए।  खासकर इस समय जब चीन के साथ बॉर्डर पर तनातनी है। क्यूंकि फिर आगे आने वाले समय में दुष्प्रचार किआ जाएगा की जब देश पर खतरा था तब यादव अलग मुद्दा पर आंदोलन कर रहे थे।  देश को कमजोर कर रहे थे।  

सभी स्क्रीनशॉट ट्विटर से लिए गए हैं 

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