भारतीय मीडिया की बेईमानी ने दिया बहुजन पत्रकारिता को उछाल



हालाँकि वर्तमान परिदृश्य भारत की निम्न वर्गीय जातियों के लिए अच्छी नहीं है, लेकिन जब हम बहुजन पत्रकारिता की बात करते हैं तो यह निश्चित रूप से पिछड़े और अनुसूचित जातियों / जनजातियों के संदर्भ में फलदायी साबित हो रहा है। अन्य सभी क्षेत्रों की तरह ही भारतीय पत्रकारिता भी उच्च जातियों के लिए स्वर्ग रही है। कोई भी उच्च जाति का व्यक्ति जो कहीं भी नौकरी नहीं पा सकता वह अपने संबंधियों के लिंक से पत्रकार बन जाता है । पश्चिम की तुलना में भारतीय पत्रकारिता में निम्न मानक के पीछे यह मुख्य कारण है।  लगभग 70-75% भारतीय पत्रकार ब्राह्मण हैं। जब हम इस सूची में अन्य उच्च जाति के पत्रकारों को जोड़ते हैं तो यह हिस्सा 93-95% तक बढ़ जाता है। जबकि सवर्णों की जनसंख्या 12-14% से अधिक नहीं हैं। दलित-पिछड़े और आदिवासी जो कि बहुसंख्यक हैं का हिस्सा नगण्य है। जिन पत्रकारों ने अपनी प्रतिभा के कारण पत्रकारिता में स्थान हासिल किया, वे पक्षपात का सामना कर रहे हैं। उन्हें अक्षम सवर्ण पत्रकारों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। उनके लिए पदोन्नति की संभावना बहुत कम है, चाहे उन्होंने कितनी ही उत्कृष्ट रिपोर्टें क्यों न लिखी हो। इन बहुसंख्यक समुदाय से जुड़े संपादकों की संख्या नगण्य है। मुख्य धारा की मीडिया के न्यूज़ एंकरों की बात करें तो बहुसंख्यक आबादी से ताल्लुक रखने वाले एंकर की संख्या शायद शून्य ही है।
चूंकि बहुत कम प्रतिनिधित्व है, भारतीय मीडिया इन समुदायों की समस्याओं की परवाह नहीं करती। दूसरी ओर वे इनके नेताओं के बारे में फर्जी खबरें प्रचारित करके उन्हें भ्रमित करते हैं, जिन्होंने इनकी अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
लेकिन अब स्थिति बदल रही है। भारतीय मुख्यधारा का मीडिया अतीत की तुलना में सबसे अविश्वसनीय दौर में है। इसने सोशल मीडिया पत्रकारिता को नया उछाल दिया है। कई पत्रकार जो दलित-पिछड़े और आदिवासी समुदाय से हैं, वे अपने समाचार चैनल को youtube पर चला रहे हैं और अपने समुदायों के मुद्दों के बारे में बात कर रहे हैं। उनमें से अधिकांश ने मुख्यधारा के मीडिया में पूर्वाग्रह का सामना किया था। इन यूट्यूबरों के लाखों सब्सक्राइबर हैं। वे खुले तौर पर ब्राह्मणवादी मॉडल की आलोचना करते हैं और जनता को जागृत करते हैं। दलित दस्तक, नेशनल दस्तक, नेशनल जनमत, एक्टिविस्ट वेद कुछ ऐसे यूट्यूब चैनल हैं जो बहुसंख्यक समुदाय के पत्रकारों के द्वारा चलाए जा रहे हैं और बहुसंख्यक आबादी को उनके खिलाफ हो रहे षड्यंत्र के विरुद्ध जागरुक कर रहे हैं।

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