लद्दाख में चीन से लड़ने वाले सैनिकों के पास हथियार थे ?

वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, नेता और रक्षा मामलों से जुड़े पत्रकार लगातार कह रहे हैं की गलवान में शहीद हुए सैनिकों के पास  हथियार नहीं थे। राहुल गाँधी ने भी ट्विटर के माध्यम से  सरकार से यह प्रश्न पूछा था की हमारे सैनिक बिना हथियार के क्यों थे।
राहुल गाँधी के सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा कि हमारे सैनिक के पास हथियार थे लेकिन 1993 और 2005 में हुए समझौते के कारण हमारे सैनिकों ने हथियार नहीं उठाए। साल 1993 और 2005 का नाम लेकर सरकार ने इसकी जिम्मेवार कांग्रेस अर्थात राहुल गांधी को ही बता दिया जो कि सरकार लगातार करती आई है। चाहे मोदी सरकार -1 हो या मोदी 2.0 हर नकारात्मक घटनाओं का जिम्मेवार मोदी और उनकी पार्टी नेहरू, इंदिरा और राजीव को हीं बताती आ रही है।
पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है कि कितने भी समझौते क्यों न हो, अगर दूसरा पक्ष हम पर इस तरह के हमले करेगा तो हमारे सैनिक किसी भी स्थिति में गोली चलाने से नहीं चूकेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सरकार के बयान पर सवाल उठाया है। सवाल उठाना लाजिमी भी है। ऐसा होना नामुमकिन है कि कर्नल रैंक का कमांडिंग ऑफिसर शहीद हो जाए और हमारे सैनिक गोली न चलाए।
 सरकार को तथ्यों को छुपाने से बचना चाहिए। इससे देशवासी पर बुरा प्रभाव पड़ता है और दुश्मनों के हौंसले बुलंद। सरकार ने पहले गलवान पर कब्जे की बात खारिज की। इससे चीन का मनोबल बढ़ा और हमें 20 सैनिक गंवाने पड़े। सरकार ने हमारे सैनिकों के चीनी कैद में होने की बात भी खारिज की थी, लेकिन आज खबर आई है कि चीन ने 4 अधिकारियों समेत 10 भारतीय सैनिकों को छोड़ा है।
समय के साथ यह भी सच सामने आ जाएगी कि हमारे पेट्रोलिंग पार्टी के पास हथियार थे या नहीं और अगर थे तो उन्होंने ऐसी स्थिति में भी हथियार का प्रयोग क्यों नहीं किया।
(चीनी सैनिकों ने ऐसे हथियारों से भारतीय सैनिक पर हमला किया)  

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