युद्ध के लिए तीन दिन में अपनी सेना तैयार कर लेने की बात करने वाले भागवत मौका आने पर चुप क्यों हो जाते?

अजय शुक्ला समेत कई वरिष्ठ रक्षा पत्रकार के अनुसार चीनी सेना गलवान घाटी और पेंगोंग त्सो के साथ कई भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ कर चुकी है और पीछे हटने को तैयार नहीं है. कई जगह पर उसने बंकर भी बना लिए हैं। वह पुरे गलवान वैली को अपना बता रही है और पेंगोंग त्सो के बड़े हिस्से पर अपना खूंटा गाड़ दी है। भारतीय और चीनी अधिकारिओं के बीच फ्लैग मीटिंग हुई जो बेनतीजा निकली। चीन पीछे हटने के मूड में बिलकुल नहीं है। ऐसा वरिष्ठ स्वतंत्र रक्षा पत्रकार बताते हैं।  दूसरी तरफ केंद्र सरकार फ्लैग मीटिंग को सफल बता रही है और अपने मीडिया से झूठ फैला रही है कि चीन पीछे हटने को तैयार हो गया है. भारत-चीन पर सीमा पर स्तिथि कितनी भयावह है इसके अंदाजा बीते सप्ताह वायरल हुई कई वीडियो से पता चलता है। जिन क्षेत्रों में भारतीय पेट्रोलिंग की संख्या कम थी और चीनी सैनिक उस क्षेत्र में उनसे कई गुना ज्यादा थे उन क्षेत्रों में उन्हें बाँधा तक गया। 70-80 सैनिकों को काफी चोटें आयी जिसके बाद उन्हें स्थिति की गौभीरता के अनुसार चंडीगढ़ तक इलाज के लिए भेजा गया।
बीते कुछ सप्ताह में इतना कुछ घटित हुआ इसके बावजूद आरएसएस या फिर खुद मोहन भागवत का कोई बड़ा बयान नहीं आया। देखा गया है की पिछले कुछ दिनों में जब कभी भी कोई बड़ी घटना घटी मोहन भागवत ने सरकार की अंग की तरह देश को सम्बोधित किया है।  कई बार तो उनका सम्बोधन सरकारी चैनल के माध्यम से लोगों को पहुंचाया गया जबकि वो ऐसे सुविधा के पात्र नहीं है, यह सुविधा सिर्फ वैसे लोगों के लिए उपलब्ध होती हैं जो सरकार के अंग होते हैं।
सोचने वाली बात है की इतनी बड़ी संस्था जिसकी एक अंग केंद्र सरकर चला रही है उसके मुखिया की तरफ से चीन के इस आक्रामकता या घुसपैठ के खिलाफ कोई बयान अबतक क्यों नहीं आया। क्या आरएसएस को देश के बॉर्डर की चिंता नहीं? क्या उसका मकसद सिर्फ देश की सत्ता पर एक वर्ग का अधिकार स्थापित करना भर है? आरएसएस के मुखपत्र में इस मुद्दे को लेकर लिखा गया है। लेकिन उसमें तियानमान और इतिहास की अन्य बातों का जिक्र है।
आरएसएस के पास लाखों की संख्या में स्वयंसेवक हैं। आये दिन होने वाले आरएसएस के कार्यक्रम और जुलूसों में ये स्वयंसेवक हथियार भी लहराते दिखते हैं। आरएसएस की शाखाओं में कई सारे गतिविधियां होती है जिसे स्वयंसेवक मिलिट्री ट्रेनिंग कहते हैं. इतने सारे स्वयंसेवक और मिलिटरी ट्रेनिंग के वावजूद आरएसएस की तरफ से चीन मुद्दे पर कोई बयां नहीं आना आरएसएस की छवि पर और गहरे प्रश्न चिन्ह लगाता है। आरएसएस क्या एक फिल्म को लेकर पुरे देश को तीन दिनों तक जलाये रखने वाले करनी सेना की तरफ से भी कोई बयां नहीं आया है। यही हाल परम प्रतापी बजरंगदल का भी है।
हालाँकि यह पहला मौका नहीं है जब इन सभी जातीय सेनाओं ने गंभीर परिस्थितिओं में अपनी जुबान बंद रखी है। 2018 में मोहन भागवत का एक बयान आया था कि आरएसएस की सेना को किसी भी युद्ध के लिए तैयार होने में तीन दिन से अधिक समय नहीं लगेगी। लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही फरवरी 2019 में जब सीआरपीएफ पर हुए हमले जिसमे ४४ सैनिक शहीद हुए थे उस समय भी ये सभी चुप्पी साधे हुए थे। जब भीम आर्मी सोशल मीडिया और मीडिया के जरिये सरकार से भीम आर्मी को पाकिस्तान बॉर्डर पर भेजने की आज्ञा देने की बात करने लगी उसके बाद करनी सेना की तरफ से भी ऐसी ही बयां आने लगी.
बजरंगदल की बात करे तो इनके कारगुजारिओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इनका काम सिर्फ दलित -पिछड़े और मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा करना और प्रेमी जोड़ों को मरना है। उत्तरप्रदेश में बीते दिन हुए कई दंगे हुए जिनमे बजरंगदल का नाम आया था।  यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या में भी बजरंगदल का ही नाम आया था।  मजलूमों की आवाज स्वामी अग्निवेश के साथ मारपीट में भी बजरंगदल ही शामिल था। लेकिन आरएसएस तो खुद को एक देशभक्त संस्था बताती है ऐसे में आरएसएस की तरफ से बॉर्डर की सुरक्षा पर कोई बयान नहीं आना दुखद है। जरुरत पड़ने पर जब खुद को बलिदान के लिए आगे नहीं कर सकते तो फिर क्या फायदा लाखों स्वयंसेवक और मिलिट्री ट्रेनिंग का? क्या फायदा ऐसी सेना का जो तीन दिन में युद्ध के लिए तैयार हो जाती है?

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