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सनातन धर्म और हिंदू धर्म किसे कहते हैं?

#सनातन #हिंदू #बौद्धधम्म #ब्रामणधर्म बुद्ध 2500 साल पहले धम्मपद में कह गए हैं -'एस धम्मो सनंतनो' यानि यह धर्म सनातन है। असोक 2300 साल पहले खुदवा गए हैं-'एस पुरातन पकिति' यानि कि यह धम्म पुरातन है। तथागत ने यह भी कहा था कि उन्होंने इस पुरातन धम्म को फिर से खोजा है अर्थात बुद्ध ने कभी नहीं कहा कि वह बौद्ध धम्म के संस्थापक हैं। बौद्ध होने की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है जिसके पुरातात्विक सबूत भी हैं। चूकि बौद्ध धम्म में प्रेम-भाईचारा का विशेष महत्व है और आग जलाने से पहले मानवों ने प्रेम से रहना सीख लिया था अतः बौद्ध धम्म सनातन हुआ क्योंकि प्रेम सनातन है। आदिमानवों में ऊंच-नीच की भावना भी नहीं ही रही होगी। बौद्ध धम्म भी किसी भी प्रकार के ऊंच-नीच जैसी विचारधारा को नकारता है। दूसरी तरफ ब्रामण धर्म यज्ञ और ऊंच-नीच की धारणा पर टिका है। आग मानव सभ्यता में बहुत बाद का आविष्कार है। ऊंच-नीच भी नई प्रकार की सोच थी अतः ब्रामण धर्म सनातन कभी नहीं हो सकता। बात करे हिंदू शब्द की तो यह पहली बार 235 ईस्वी में ससैनियन्स(ईरानी) के द्वारा प्रयोगा किया गया था। तब भारत में ब्राह्मण धर्म की ...

सुशील मोदी के पास लालू कवच है, उनको कोरोना नहीं होगा, घर से निकलें- पूर्व CM राबड़ी देवी

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पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पर रविवार को तंज कसा। राबड़ी ने ट्वीट किया- सुशील मोदी को घर से बाहर निकलना चाहिए, उन्हें कोरोना नहीं होगा। क्योंकि सुशील मोदी के पास लालू कवच है। ये आदमी दिन में 72 हजार बार शक्तिशाली लालू मंत्र का जाप करता है और कोरोना दूर भगाता है। आगे ट्वीट है- @sushilModi कहां छुपल है? जल्दी बिल से बाहर निकलो। बता दें कोरोना संक्रमण फैलने के शुरुआत दिनों से ही उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिस पर विपक्ष लगातार हल्ला बोल रहा है।   लालू समर्थकों के लिए खुशखबरी है।  पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है। हालांकि तीन-चार दिन बाद लालू की फिर कोरोना जांच होगी। बता दें रांची के रिम्स अस्पताल में भर्ती लालू प्रसाद का सैंपल शनिवार को लिया गया था। रिम्स के डॉ. उमेश प्रसाद ने कहा कि एहतियातन लालू प्रसाद की कोरोना जांच कराई गई है।

पेट भरने के लिए मुर्दा बन रहे गरीब, आ गया बहार

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 बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है। लोग कहीं कोरोना से , कहीं बाढ़ से तो कहीं बेरोजगारी से मर रहे हैं। चारों तरफ कोलाहल है जो सरकार की असफलता, अअकर्मण्यता और नपुंसकता का परिचायक है। इसके बेवजूद बेशर्मी की हद पार करते हुए सरकार खुद का गुणगान कर रही है। लेकिन, पिछले चुनाव का नीतीश सरकार का स्लोगन अब भी खूब जोर से प्रचार किया जा रहा है- बिहार में बहार है, नीतीशे सरकार है।  आरा का एक वाकया सामने आने के बाद लोगों की जुबां पर यही सवाल है ; क्या यही बिहार में बहार है? दरअसल, आरा में एक रिक्शा चालक कई दिनों से भूखा था। लॉकडाउन के कारण सवारी नहीं मिल रही थी तो पेट भरने के लिए वह कफन ओढ़कर सड़क किनारे सो गया। इसके बाद राहगीरों ने कुछ पैसे डालना शुरू कर दिए। कई ने फूल और अगरबत्ती तक लाकर वहां रख दिए। कई दिनों से रिक्शा चालक यह तरकीब अपनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। बता दें यह रिक्शा चालक पटना के बिहटा के रहने वाले हैं। इनका नाम रामदेव है और आरा में रिक्शा चलाकर परिवार पालते हैं। मामला उजागर होने के बाद रामदेव ने बताया कि मार्च में केंद्र सरकार द्वारा लागू लॉकडाउन में उन्हें परेश...

क्या आप अब भी नहीं मानते भारतीय मीडिया हाउस गद्दार है? मीडिया का बॉयकॉट शुरु कीजिए

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न्यूज़ चैनल पर चीनी सामानों के बहिष्कार की खूब बात हो रही है। वैसे तो न्यूज़ चैनल पर इसकी चर्चा हर उस  वक़्त होती है जब हमारी सेना पर पाकिस्तान की तरफ से फ़ायरिंग होती है या फिर चीन हमारी सीमा पर आक्रमकता दिखाता है। लेकिन चूंकि इस बार चीन के साथ मामला काफी बढ़ गया है तो न्यूज़ चैनल पर पहले की तुलना में चीन के बहिष्कार की बात ज्यादा हो रही है। ये न्यूज़ चैनल चीन के बहिष्कार की बात तो खूब करते हैं लेकिन इस पर खुद अमल नहीं करते।  हद तो यह है की चीनी सामान के बहिष्कार के लिए इनके चैनल पर हो रहे डिबेट को कोई न कोई चीनी कंपनी ही प्रायोजित करती है। चीनी कंपनी इन न्यूज़ चैनलों की आय का बड़ा जरिया है। ये बात ये चैनल समझते हैं और इसलिए कई दफा भारत-चीन सम्बंधित वैसे मुद्दे जहाँ भारत नुकसान की स्थिति में रहता है उस खबर को नहीं दिखाते। न्यूज़ चैनल बिज़नेस तो एक व्यापर है। लोगों का मरना या सैनिकों का शहीद होना उनको प्रभावित नहीं करता।  उन्हें सिर्फ मुनाफे कमाने से मतलब है। इसका उदहारण है आजतक की रिपोर्टर स्वेता सिंह का हालि...

लद्दाख में चीन से लड़ने वाले सैनिकों के पास हथियार थे ?

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वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, नेता और रक्षा मामलों से जुड़े पत्रकार लगातार कह रहे हैं की गलवान में शहीद हुए सैनिकों के पास  हथियार नहीं थे। राहुल गाँधी ने भी ट्विटर के माध्यम से  सरकार से यह प्रश्न पूछा था की हमारे सैनिक बिना हथियार के क्यों थे। राहुल गाँधी के सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा कि हमारे सैनिक के पास हथियार थे लेकिन 1993 और 2005 में हुए समझौते के कारण हमारे सैनिकों ने हथियार नहीं उठाए। साल 1993 और 2005 का नाम लेकर सरकार ने इसकी जिम्मेवार कांग्रेस अर्थात राहुल गांधी को ही बता दिया जो कि सरकार लगातार करती आई है। चाहे मोदी सरकार -1 हो या मोदी 2.0 हर नकारात्मक घटनाओं का जिम्मेवार मोदी और उनकी पार्टी नेहरू, इंदिरा और राजीव को हीं बताती आ रही है। पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है कि कितने भी समझौते क्यों न हो, अगर दूसरा पक्ष हम पर इस तरह के हमले करेगा तो हमारे सैनिक किसी भी स्थिति में गोली चलाने से नहीं चूकेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सरकार के बयान पर सवाल उठाया है। सवाल उठाना लाजिमी भी है। ऐसा होना नामुमकिन है कि कर्नल रैंक का कमांडिंग...

क्या भारत ने नाथू-ला से कुछ नहीं सीखा? क्या है नाथू-ला का पाकिस्तान कनेक्शन?

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ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि लद्दाख में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को बिना हथियार के रहने को कहा गया था। चीन जो की बीते कुछ सप्ताह से आक्रामक रुख अपनाए हुए है और बार-बार हो रहे स्टैन्डॉफ के बावजूद पीछे हटने को तैयार नहीं है, उसके सामने निहत्थे सैनिकों को भेजना क्या उचित था, जब हम जानते हैं कि चीन गद्दारी और पीठ में छूरा भोकने के लिए जाना जाता है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब चीन ने धक्का-मुक्की के बाद अचानक हम पर हमला किया है।  लेकिन हम अपनी पिछली गलतियों से ज्यादा कुछ नहीं सीख रहे। हम बात कर रहे हैं 1967 में हुए भारत-चीन संघर्ष की, जिसे दूसरा भारत-चीन युद्ध भी कहा जाता है और जिसमें भारत को विजय प्राप्त हुई थी। जिस तरह से आज सीमावर्ती कई इलाकों से भारत-चीन सैनिकों के बीच हाथापाई की खबरें आ रही हैं तब भी कुछ ऐसा ही हाल था। इस तरह की संघर्ष  नाथू-ला में भी 1963 के बाद बढ़ गयी थी। नाथू-ला के उत्तरी सिरे पर चीन का जबकि दक्षिणी हिस्से पर भारत का कब्ज़ा था।  भारत-पाक युद्ध 1965 के दौरान अयूब ...

जिसे पाने के लिए लोग लाखों खर्च करते हैं लालू प्रसाद यादव ने उसे क्यों जाने दिया?

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भारतीय मीडिया और राजनैतिक विरोधी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव  को तथाकथित चारा घोटाला को लेकर लगातार बदनाम करते रहते हैं। इस तरह ये लोग संगठित तरीके से लालू प्रशंषकों के बीच उनकी छवि धूमिल करने की फ़िराक़ में लगे रहते हैं। राजनैतिक विरोधी तो ऐसा करेंगे ही, लेकिन मीडिया इस तरीके से लालू प्रसाद यादव के पीछे क्यों पड़ी रहती है जब चारा घोटाला के मास्टरमाइंड स्वर्गीय जग्गन्नाथ मिश्रा थे और लालू ने चारा घोटाला के जांच के आदेश दिए थे। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें भारतीय मीडिया के ढाँचे को समझना होगा। भारतीय मीडिया में 75 % से अधिक हैं ब्राह्मण हैं।  सवर्णों की बात करे तो वे भारतीय मीडिया में 95 % से अधिक पाए जाते हैं। लालू प्रसाद यादव ने मीडिया में कुंडली मारकर बैठे इन्हीं  लोगों के कौम के सामंती रवैये पर प्रहार कर दलित-पिछड़े को उनका अधिकार दिलाया। इसलिए लालू प्रसाद यादव को देखकर या उनका नाम सुनते ही इनके शरीर में कम्पन  शुरू हो जाती है और जुबान लडख़ड़ाने लगती है, जिसके परिणाम स्वरुप वे लोग कुछ भी बकने लगते हैं।    ...