पेट भरने के लिए मुर्दा बन रहे गरीब, आ गया बहार
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है। लोग कहीं कोरोना से , कहीं बाढ़ से तो कहीं बेरोजगारी से मर रहे हैं। चारों तरफ कोलाहल है जो सरकार की असफलता, अअकर्मण्यता और नपुंसकता का परिचायक है। इसके बेवजूद बेशर्मी की हद पार करते हुए सरकार खुद का गुणगान कर रही है। लेकिन, पिछले चुनाव का नीतीश सरकार का स्लोगन अब भी खूब जोर से प्रचार किया जा रहा है- बिहार में बहार है, नीतीशे सरकार है।
आरा का एक वाकया सामने आने के बाद लोगों की जुबां पर यही सवाल है ; क्या यही बिहार में बहार है? दरअसल, आरा में एक रिक्शा चालक कई दिनों से भूखा था। लॉकडाउन के कारण सवारी नहीं मिल रही थी तो पेट भरने के लिए वह कफन ओढ़कर सड़क किनारे सो गया। इसके बाद राहगीरों ने कुछ पैसे डालना शुरू कर दिए। कई ने फूल और अगरबत्ती तक लाकर वहां रख दिए। कई दिनों से रिक्शा चालक यह तरकीब अपनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। बता दें यह रिक्शा चालक पटना के बिहटा के रहने वाले हैं। इनका नाम रामदेव है और आरा में रिक्शा चलाकर परिवार पालते हैं।
आरा का एक वाकया सामने आने के बाद लोगों की जुबां पर यही सवाल है ; क्या यही बिहार में बहार है? दरअसल, आरा में एक रिक्शा चालक कई दिनों से भूखा था। लॉकडाउन के कारण सवारी नहीं मिल रही थी तो पेट भरने के लिए वह कफन ओढ़कर सड़क किनारे सो गया। इसके बाद राहगीरों ने कुछ पैसे डालना शुरू कर दिए। कई ने फूल और अगरबत्ती तक लाकर वहां रख दिए। कई दिनों से रिक्शा चालक यह तरकीब अपनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। बता दें यह रिक्शा चालक पटना के बिहटा के रहने वाले हैं। इनका नाम रामदेव है और आरा में रिक्शा चलाकर परिवार पालते हैं।
मामला उजागर होने के बाद रामदेव ने बताया कि मार्च में केंद्र सरकार द्वारा लागू लॉकडाउन में उन्हें परेशानी नहीं हुई, क्योंकि शहर के कई समाजसेवी और संगठनों द्वारा खाना बांटा जाता था। इस बार ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में पेट पालने के लिए मजबूरन लाश बनना पड़ा।
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