इंटर केटेगरी शादियों के लिए कानून बने, आएगा क्रांतिकारी बदलाव


प्राइवेट नौकरी के दौरान मेरे एक मित्र (रंजन कुमार) को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाली एक लड़की (ऋतु) से प्रेम हो गया। रंजन पिछड़ी जाति का और ऋतु सामान्य वर्ग से ताल्लुक रखती है। ऋतु के कहने पर कि बिना अच्छी
सरकारी नौकरी के दोनों का विवाह असंभव है, परिवार पर आए आर्थिक विपत्तियों के बावजूद रंजन नौकरी छोड़कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गया। एक साल की कड़ी मेहनत के बाद उसका चयन बैंक पीओ के तौर पर हो
गया। ऋतु भी बैंक क्लर्क के लिए चुनी जा चुकी थी। ऋतु के  माता- पिता को बहुत पसंद आने के बावजूद दोनों की शादी नहीं हो पाई। ऋतु के माता-पिता ने केवल इस कारण रिश्ता नामंजूर कर दिया कि समाज क्या कहेगा?
       ऐसी सोच केवल ऋतु के माता-पिता की ही नहीं बल्कि उनके जैसे लाखों अभिभावकों की है जो जातियता से ऊपर उठना चाहते हैं, पर समाज की उपेक्षा के डर से जाति की
बेड़ियों को तोड़ नहीं पाते। नतीजतन समाज में खाईबढ़ती जा रही है,जो समय-समय पर अपना विकराल रूप दिखाती है।           यहां सरकार का काम शुरू होता है। सरकार कानून बनाकर बड़ी आसानी और बिना किसी के विरोध के इस खाई को
कम कर सकती है। कानून बनाकर सरकार सेवा में कार्यरत सभी अविवाहित सेवकों और भविष्य में सरकारी सेवा में शामिल होने वालों को इंटर केटेगरी(सामान्य, पिछड़ी जाति, एससी-एसटी) शादियां करने के  लिए बाध्य किया जाए। तथ्य छुपाकर शादी करने वालों को बर्खास्त किया जाए। अर्थ दंड
के रूप में सेवा काल के दौरान दिए गए वेतन की वसूली की जाए और जालसाजी के लिए जेल भेजा जाए। ध्यान रहे  कि यहां इंटर केटेगरी शादी की बात हो रही है। इसका प्रभाव इंटर कास्ट मैरेज से बहुत ज्यादा होगा। एक ही केटेगरी की
दो जातियों के बीच मतभेद और भेदभाव दो केटेगरी की दो जातियों की तुलना में काफी कम होता है। इसलिए वैसी शादियां समाज पर बड़ा प्रभाव नहीं छोड़ती।केवल इस कानून के उचित चौकसी से समाज में क्रांतिकारी
परिवर्तन लाया जा सकता है। अभिभावक बिना किसी सामाजिक उपेक्षा के डर के अपने बच्चों का विवाह दूसरी जाति में करेंगे। इससे कुछ ही समय में समाज की दशा-दिशा बदल जाएगी। बहुत हद तक आरक्षण के लिए और इसके  विरुद्ध उठने वाली आवाज कमजोर होगी। दहेज  प्रथा जैसे सामाजिक मुद्दों पर भी जोरदार प्रहार होगा।

Comments

  1. आपकी बात सही है लेकिन सरकार ऊँची जात वालों की है वो ये नही चाहेगी की जातिवाद खत्म हो।

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