मुस्लिम गाते गायत्री मंत्र, फिर हिंदू खतरे में क्यों?

आज लगभग हर एक स्कूल में प्रार्थना के समय गायत्री मंत्र गायी जाती है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले करोड़ों मुस्लिम विद्यार्थी सुबह-सुबह गायत्री मंत्र गाते हैं। DAV जैसे स्कूलों में नियमित रूप से होने वाले हवन में मुस्लिम विद्यार्थी भी शामिल होते हैं और विधिपूर्वक यज्ञ करते हैं बिना किसी दबाव  के। इसलिए गुमराह मत होइए। सत्ता के बहकावे में मत आइए। मुस्लिम को आपके धर्म से बैर नहीं है।
  मुस्लिम आमतौर पर किसी का पैर छूने से बचते हैं। वे इसे इस्लाम के खिलाफ बताते हैं। इसके बावजूद ये विद्यार्थी स्कूलों में शिक्षकों के पैर छूते हैं। स्कूल के बहार भी कई मुसलमान आपको ऐसा करते दिख जाएंगे। कई मदरसों में भी हर दिन गायत्री मंत्र का पाठ होता है। दूसरी ओर हम देखते हैं कि इक़बाल की नज्म "लब पर बन कर दुआ निकलती है तमन्ना मेरी " जैसी प्रचलित नज्म को एक प्राथमिक विद्यालय में गा दिए जाने पर दिव्यांग मुस्लिम शिक्षक को ससपेंड कर दिया जाता है। आप खुद सोचिए ज्यादा लचीला आप हैं या मुसलमान?
आजकल माहौल ऐसा है कि उर्दू को इस्लामी भाषा घोषित कर दिया गया है। कोई हिंदू अगर थोड़ा भी उर्दू पढ़ना-बोलना जानता है तो उसे मुल्ला घोषित कर दिया जाता है। जबकि दूसरी ओर मुस्लिम विद्यार्थी भारी संख्या में संस्कृत पढ़ते हैं। हिंदू देवी-देवताओं के भजन गायन का मसला हो या फिर मूर्ति बनाने का मुस्लिम कलाकार इसमें भी काफी आगे हैं।
 यह काफी छोटा उदाहरण है यह समझने के लिए कि घुल-मिल कर एक दूसरे के साथ रह रहे हिंदू-मुस्लिम को एक दूसरे के खिलाफ भड़काकर सरकारें अपनी असफलताओं को छिपाना चाहती है। इतना ही नहीं इस कोलाहल के बीच सत्ता में बैठे लोग बड़े-बड़े घोटालों को भी अंजाम देते आए हैं।
अतः माहौल खराब करने वालों से सतर्क रहिए। 

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