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Showing posts from February, 2020

इसे पिछड़ों का दोगलापन कहे या ब्राह्मणों की चाटने की आदत?

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लालू ने जनेऊधारियों की गंदी-गंदी गालियां सुनने के बावजूद सरकारी नौकरी में पिछड़ों को आरक्षण दिलाया। पिछड़ों को सरकारी नौकरी आरक्षण के कारण मिली। लेकिन मंदबुद्धि पिछड़े लालू को ही गाली देते हैं। दूसरी तरफ प्रशासन में ऊंचे स्थान पर बैठे जनेऊधारी अधिकारी सभी योग्यता होने के बावजूद इन पिछड़ों को प्रोमोशन नहीं देते। सामान्यतः इनसे अयोग्य जनेऊधारियों को समयपूर्व प्रमोशन दे दिया जाता है। इतना सब होने के बावजूद ये पिछड़े इन्हीं जनेऊधारियों के संगठनों की झंडा उठाते रहते हैं और उन झंडों में लगे डंडों की लगातार मार खाते रहने के बावजूद इन्हें अक्ल नहीं आती। शायद जनेऊधारियों की डंडे खाने में ही इन्हें परम आनंद की अनुभूति होती है। शायद जनेऊधारियों के डंडे में ही इनका मोक्ष छुपा है। -कुमार शशि

मुस्लिम गाते गायत्री मंत्र, फिर हिंदू खतरे में क्यों?

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आज लगभग हर एक स्कूल में प्रार्थना के समय गायत्री मंत्र गायी जाती है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले करोड़ों मुस्लिम विद्यार्थी सुबह-सुबह गायत्री मंत्र गाते हैं। DAV जैसे स्कूलों में नियमित रूप से होने वाले हवन में मुस्लिम विद्यार्थी भी शामिल होते हैं और विधिपूर्वक यज्ञ करते हैं बिना किसी दबाव  के। इसलिए गुमराह मत होइए। सत्ता के बहकावे में मत आइए। मुस्लिम को आपके धर्म से बैर नहीं है।   मुस्लिम आमतौर पर किसी का पैर छूने से बचते हैं। वे इसे इस्लाम के खिलाफ बताते हैं। इसके बावजूद ये विद्यार्थी स्कूलों में शिक्षकों के पैर छूते हैं। स्कूल के बहार भी कई मुसलमान आपको ऐसा करते दिख जाएंगे। कई मदरसों में भी हर दिन गायत्री मंत्र का पाठ होता है। दूसरी ओर हम देखते हैं कि इक़बाल की नज्म "लब पर बन कर दुआ निकलती है तमन्ना मेरी " जैसी प्रचलित नज्म को एक प्राथमिक विद्यालय में गा दिए जाने पर दिव्यांग मुस्लिम शिक्षक को ससपेंड कर दिया जाता है। आप खुद सोचिए ज्यादा लचीला आप हैं या मुसलमान? आजकल माहौल ऐसा है कि उर्दू को इस्लामी भाषा घोषित कर दिया गया है। कोई हिंदू अगर थोड...

भूमिहार सांसद गिरिराज के छूने से अशुद्ध हुए अंबेडकर की प्रतिमा को दलितों ने नहलाकर किया शुद्ध

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हम देखते आए हैं दलितों के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ जाने के बाद भी अगर वह किसी मंदिर में जाता है तो ब्राह्मण,भूमिहार, राजपूत उस मंदिर को धुलवा देते हैं। लेकिन अब वक्त बदल रहा है।  बेगूसराय से एक खुशखबरी आई है। बेगूसराय के भूमिहार सांसद ने जब वहां भारत रत्न बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति को माला चढ़ाया और उसके समर्थकों ने मूर्ति के सामने जय श्रीराम का नारा लगाया तो दलितों ने इसे बाबा साहब का अपमान माना। गिरिराज के वहां से जाने के बाद उन लोगों ने शुद्धिकरण के लिए बाबा साहब की मूर्ति को नहलाया। गौरतलब है कि बाबा साहब ने हिंदू धर्म के छुआ-छात से तंग आकर बुद्ध धर्म अपनाया था। अतः उनकी प्रतिमा के सामने जय श्रीराम का नारा लगाना उनका मजाक उड़ाना ही हुआ। अतः दलितों का यह साहसपूर्ण कदम काबिल-ए-तारीफ है।  ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत आपसे जैसा व्यवहार करते हैं आप भी उनसे वैसा ही व्यवहार करने लगिए। बस उनकी हेकड़ी निकल जाएगी। अगर वह आपको अछूत कहते हैं तो आप उन्हें अछूत बना दिजिए। ठीक रिजनिंग की उस प्रश्न की तरह जिसमें एक रेखा को बिना काटे छोटा बनाने के लिए उसके बगल में एक बड़ी लाइन खींच ...